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तखार्यचिन्तामणिः
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आत्मसहितपन और प्राण आदि सहितपनरूप साध्य हेतुओंकी व्याप्तिको सिद्ध करानेका कारण क्यों नहीं हो जावेगा? जिससे कि बौद्धोंके यहां अन्वयीके समान व्यतिरेकी भी हेतु न हो सके, यानी व्यतिरेकी भी हेतु बन जायगा । सत्त्व हेतुको व्यतिरेककी सामर्थ्यसे क्षणिकपन साध्यका बोधक मान लिया जाय और प्राणादिमत्त्वको सात्मकपनको साधनेके लिये गमक न माना जाय, इस पक्षपात पूर्ण उक्तिमें कोई नियामक नहीं है। हम सत्त्व हेतुसे इस प्राणादिमत्वका सभी प्रकारोंसे गमकपन और सर्वथा अज्ञापकपनमें कोई विशेष चमत्कार नहीं देख रहे हैं। फिर सत्त्वको गमकपना और प्राण आदि सहितपनेको अगमकपना क्यों कहा जा रहा है ! इस ढंगसे प्राणादिमत्त्व और पुद्गलका इतर द्रव्योंसे भेदको साधने के लिए दिया गया रूपवत्त्व इत्यादिक व्यतिरेकी हेतुओंकी व्याप्तिकी सिद्धिको नहीं स्वीकार करनेवाले बौद्धोंके यहां सत्त्व, कृतकत्व, आदि हेतुओंकी भी अपने साध्य क्षणिकपन आदिके साथ उस व्याप्तिका नहीं सिद्ध होना बलात्कारसे आगिरता ही है। तिस कारण पदार्थोका क्षणिकपना और सर्वथा विलक्षणपना नहीं सिद्ध होता है। सत्त्व हेतुकी प्रकृतसायके साथ व्याप्ति सिद्ध नहीं हो सकी है । दूसरी बात यह भी है कि बौद्धोंका अपना क्षणिकपनेका सिद्धान्त पुष्ट करनेके लिये दिया गया सत्त्व हेतु विरुद्धहेत्वाभास भी है, सो प्रसिद्ध ही है, इसको दिखलाते हैं । " साध्यविपरीतव्याप्तो हेतुविरुद्धः "। ... क्षणिकेपि विरुध्येते भावेनंशे क्रमाक्रमो। ,
- स्वार्थक्रिया च सत्वं च ततोनेकान्तवृत्ति तत् ॥ ७॥ * एक ही क्षणतक ठहरनेवाले और अंशोंसे रहित निरात्मक भावमें भी क्रम और योगपद्य नहीं ठहरते हैं। तथा अपने योग्य अर्थक्रिया भी नहीं होती है। अर्थात् कूटस्थके समान निःस्वभाव क्षणिक पदार्थमें भी क्रम और योगपद्य तथा अर्थक्रियाका होना विरुद्ध हो रहे हैं। क्योंकि ये अनेक धर्म आत्मक पदार्थमें पाये जाते हैं तिस कारण वह बौद्धोंका सत्त्व हेतु विपक्षमें वृत्ति होनेसे अनैकान्तिक (व्यभिचारी) है । अथवा एकान्त साध्यवानसे विपरीतमें वृत्ति कर रहा वह हेतु विरुद्ध है।
- सर्वथा क्षणिके न क्रमाक्रमी परमार्थतः संभवतस्तदसंभवे ज्ञानमात्रमपि स्वकीयार्थक्रिया कुतो व्यवतिष्ठते ? यतः सचं ततो विनिवर्तमानं कथंचित्क्षणिकेनेकांतात्मनि स्थिति मासाद्य तद्विरुदं न भवेदित्युक्तोत्तरमायं ।
- सभी प्रकार मूलसे ही दूसरे क्षणमें नाश होनेवाले पदार्थमें वास्तविकरूपसे क्रम और अक्रम नहीं बनते हैं। क्रम तो कालान्तरस्थायी पदार्थमें बनता है और अक्रम यानी एक साथ कई कार्योको करना भी कुछ देरतक ठहरनेवाले पदार्थमें संभवता है । तिस कारण उन क्रम अक्रमके
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