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तलार्थचिन्तामणिः
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अप्रामाण्यकी प्रयोजक हो रही विशेषतायें नहीं पायी जाती हैं। जिससे कि अनुमानमें प्रमाणपना और स्मृतिमें अप्रमाणपना ठहरा दिया जाय ।
मनसा जन्यमानत्वात्संस्कारसहकारिणा । सर्वत्रार्थानपेक्षेण स्मृतिर्नार्थवती यदि ॥३०॥ तदा संस्कार एव स्यात्प्रवृत्तिस्तन्निबंधना। तत्रासंभवतोर्थे चेद्यक्तमीश्वरचेष्टितम् ॥ ३१ ॥
बौद्ध कह रहे हैं कि अर्थकी नहीं अपेक्षा करनेवाले और केवल भूतमें जाने हुये पदार्थके संस्कारको सहकारी कारण रखनेवाले मनके द्वारा सर्वत्र स्मृति उत्पन्न हो रही है, अतः स्मृति अर्थ वाली नहीं है । ग्रन्थकार कहते हैं कि यदि ऐसा कहोगे तब तो संस्कारके होनेपर ही उस संस्कारको कारण मानकर उस अर्थमें प्रवृत्ति होगी । किन्तु अर्थके न होनेपर केवल संस्कारद्वारा प्रवृत्ति होना असंभव है । अतः बौद्धोंका यह मनमानी नियम गढना स्पष्टरूपसे सबके सन्मुख ( सरे बाजार ) स्वतन्त्र सम्राटपनेकी चेष्टा करना है। अथवा वैशेषिकों द्वारा माने गये स्वतंत्र ईश्वरके सदृश कुछ भी युक्त अयुक्त मममानी क्रिया करना है।
: अनर्थविषयत्वेपि स्मृतेः प्रवर्तमानोर्थे प्रवर्तते संस्कारे प्रवृत्तेरसंभवादिति स्फुट राजचेष्टितं यथेष्टं प्रवर्तमानात् । । ___जैसे कोई स्वतन्त्र राजा अपनी सामर्थ्यके घमंडमें आकर चाहे जैसे कर लगा देता है, स्ववर्गका पक्ष करता है, परवर्गको अनुचित दण्ड देता है, उसीके समान यह बौद्ध भी स्पष्ट रीतिसे राजाकी चेष्टा कर रहा है । क्योंकि अपनी इच्छाके अनुसार चाहे जहां प्रवृत्ति कर रहा है। स्मृतिको वस्तुभूत अर्थका विषय करनेवाली नहीं मानता हुआ भी प्रवृत्ति करनेवाला बौद्ध उस स्मृतिके द्वारा अर्थमें प्रवर्त रहा है। संस्कार होनेपर तो प्रवृत्ति होना असम्भव है। अतिवृद्ध अवस्थामें पडे हुए संस्कार बिचारे युवा अवस्थाके समान त्रिवर्गसेवनमें प्रवृत्ति नहीं करा सकते हैं । अर्थात् बौद्धोंने स्मृतिके द्वारा अर्थोंमें प्रवृत्ति होना तो मान लिया, किन्तु स्मृतिको अर्थवती न माना, ऐसा मनचाहा अन्टसन्ट व्यवहार अविचारी मनुष्य ही करते हैं। देखिये, बालक भी स्मरण कर अोंमें प्रवृत्ति करते हुए देखे जाते हैं । अतः प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष अनुमानके समान स्मृति भी अर्थवाली है। पंतिके परदेश जानेपर जैसे स्त्री पतिवाली बनी रहती है, ऐसे ही अर्थके भूतकालमें जानेपर भी या किसीकी ओटमें हो जानेपर भी स्मृति अर्थवाली है। राजा या सेठकी जेबमें यदि किसी समय रुपया नहीं भी होय तो भी वे अर्थवान हैं।