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तत्वार्थ लोकवार्तिके
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अर्थ विना हो जाता है। देखो, रजतके नहीं होते हुये भी सीपमें रजतका ज्ञान हो जाता है। सर्वज्ञको भूत, भविष्य, पर्यायोंका प्रमाण आत्मक प्रत्यक्ष हो रहा है । यह व्यतिरेक व्यभिचार हुआ । अर्थके विना भी ज्ञान हो गया। आप बौद्ध विचारें तो सही कि पूर्वक्षणवर्त्ती अर्थको कारण मानकर उसके सद्भावसे यदि प्रत्यक्ष उत्पन्न होगा, तब तो सम्पूर्ण प्रत्यक्ष अर्थके नहीं विद्यमान होनेपर ही हुये, अन्यथा यानी कार्यकालमें कारणकी सत्ता मानी जायगी, तब व्यतिरेक व्यभिचार तो टल जायगा, किन्तु आपका माना हुआ क्षणिकपनेका सिद्धान्त गिर गया । क्योंकि दो, तीन, आदि क्षणोंतक स्वलक्षणतत्त्व ठहर गया ।
अर्थाकारत्वतोध्यक्षं यदर्थस्य प्रबोधकं ।
तत एव स्मृतिः किं न स्वार्थस्य प्रतिबोधिका ॥ २८ ॥
ज्ञान अर्थका आकार ( प्रतिबिंब ) पडजानेसे प्रत्यक्षको जिस कारण अर्थका बोध करानेवाला माना गया है, उस ही कारण स्मृति भी स्व और अर्थकी व्युत्पत्ति करानेवाली क्यों न हो जावे ? अर्थका विकल्प करनारूप आकार दोनों प्रत्यक्ष और स्मृतिमें एकसा है। घूस खानेवाले अधिकारीके समान आत्माका विभाव चारित्र भले ही अन्याय कर बैठे, किन्तु आत्माका ज्ञानपरिणाम छोटे बालकके समान अन्यायमार्गको नहीं पकडता है । हां, मिष्टान्न देनेवाले ठगके समान चारित्ररूप मोहके विभावसे बरगलाये गये बालकके समान ज्ञान कभी कभी न्यून अधिक बकने लग जाता है । वस्तुतः सभी समीचीनज्ञान सविकल्पक हैं ।
अस्पष्टत्वेन चेन्नानुमानेप्येवं प्रसंगतः । प्राप्यार्थेनार्थवत्ता चेदनुमायाः स्मृतेर्न किम् ॥
२९ ॥
यदि अस्पष्ट प्रतिभास होने के कारण स्मृतिको अर्थरहित मानोगे तो ठीक नहीं। क्योंकि इस प्रकार अनुमानमें भी अर्थवान् न हो सकनेका प्रसंग आवेगा । यदि अपरमार्थभूत सामान्यरूप ज्ञेय विषयकी अपेक्षासे नहीं किन्तु प्राप्त करने योग्य वस्तुभूत स्वलक्षण अर्थकी अपेक्षासे अनुमानको अर्थवान कहा जायगा, तंत्र तो प्राप्त करने योग्य अर्थकी अपेक्षासे स्मृतिको भी अर्थवाली क्यों नहीं माना जाता है ? स्मरणकर मुखमें कौर देदिया जाता है । अन्धकार दशामें गृहके अभ्यस्त पदार्थोका स्मरणकर ठीक वे के वे ही ग्रहण कर लिये जाते हैं ।
ततो न सौगतोऽनुमानस्य प्रमाणातामुपयंस्तामपाकर्तुमीशः सर्वथा विशेषाभावात् ।
तिस कारण बौद्धवादी अनुमानके प्रमाणपनको स्वीकार करता हुआ उस स्मृतिका खण्डन करने के लिए समर्थ नहीं हो सकता है। सभी प्रकारोंसे अनुमान और स्मृतिमें कोई प्रामाण्य और