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श्रीविद्यानंद-खामिविरचितः तत्त्वार्थश्लोकवार्त्तिकालंकारः
तत्त्वार्थचिंतामणिटीकासहितः
(तृतीयखंडः)
. 000000000 सम्यग्दर्शनके निरूपण अनन्तर सम्यग्ज्ञानका प्रकरण उठाते हैं प्रथम ही सम्यग्ज्ञानके भेदोंका प्रतिपादक सूत्र कहा जाता है।
मतिश्रुतावधिमनःपर्ययकेवलानि ज्ञानम् ॥ ९॥ मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान, और केवलज्ञान ये पांच समीचीन ज्ञान हैं। किमर्थमिदं सूत्रमाहेत्युच्यते
इस सूत्रको उमास्वामी महाराज किस प्रयोजनके लिये कह रहे हैं, ऐसी जिज्ञासा होनेपर श्रीविद्यानन्द स्वामी करके उत्तर कहा जाता है ।
अथ स्वभेदनिष्ठस्य ज्ञानस्येह प्रसिद्धये । प्राह प्रवादिमिथ्याभिनिवेशविनिवृत्तये ॥ १॥
इस सम्यग्दर्शन के प्रकरणके अनन्तर अब अपने भेदोंमें ठहरनेवाले ज्ञानकी प्रसिद्धिके लिये और अनेक प्रवादियोंके झूठे अमिमानसे हुये कदाग्रहकी निवृत्ति करनेके लिये यहां यह सूत्र स्पष्टरूपसे निरूपण किया गया है ।
न हि ज्ञानमन्वयमेवेति मिथ्याभिनिवेशः कस्यचिन्निवर्तयितुं शक्यो विना इत्यादि भेदनिष्ठसम्यग्ज्ञाननिर्णयात् तदन्यमिथ्याभिनिवेशवत्, न चैतस्मात्सूत्राहते तनिर्भय इति रक्तमिदं संपश्यामः ।