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तत्त्वार्यचिन्तामणिः
प्रमाणेन प्रतीतेर्थे यत्तद्देशोपसर्पणम् ।
सा प्रवृत्तिः फलस्याप्तिस्तस्याः सामर्थ्यमिष्यते ॥ ११३ ॥ प्रसृतिर्वा सजातीयविज्ञानस्य यदा तदा । फलप्राप्तिरपि ज्ञाता सामर्थ्यं नान्यथा स्थितिः ॥ ११४ ॥ तद्विज्ञानस्य चान्यस्मात् प्रवृतिबलतो यदि । तदानवस्थितिस्तावत्केनात्र प्रतिहन्यते ॥ ११५ ॥
तहां नैयायिक या वैशेषिक प्रवृत्तिकी सामर्थ्यसे प्रमाणपना प्रतीत होता है, यह मानते हैं । “प्रमाणतो अर्थप्रतीतौ प्रवृत्ति सामर्थ्यादर्थवत्प्रमाणं" । जलको जानकर स्नान, पान, अवगाहनमें प्रवृत्ति हो जानेकी सामर्थ्य से प्रमाण अर्थवान् है । आचार्य कहते हैं कि इस प्रकार प्रमाणको अर्थ सहितपना तो ठीक नहीं है । क्योंकि ऐसा माननेपर अनवस्था दोषका प्रसंग होता है । उस दोषको स्पष्ट कर दिखलाते हैं कि प्रवृत्तिकी सामर्थ्यका अर्थ आप नैयायिक क्या करेंगे ? बताओ ! प्रमाणकरके अर्थ प्रतीत हो जानेपर जो उस प्रमेयके देशमें झटपट गमन करता है, वह प्रवृत्ति है । और जलज्ञानसे जलको जानकर स्नान, पान, अवगाहनरूप फलकी प्राप्ति हो जाना उस प्रवृत्तिकी सामर्थ्य मानी जा रही है ? अथवा जलज्ञानकी दृढताको सम्पादन करनेके लिये जलज्ञानके समान जातिवाले दूसरे विज्ञानकी उत्पत्ति हो जाना सामर्थ्य है ? यदि पहिला पक्ष ग्रहण करोगे तब स्नान, पान आदि फलकी प्राप्ति भी अन्यज्ञानसे होती हुई ही सामर्थ्य बन सकती है । अन्यथा यानी दूसरे प्रकारोंसे व्यवस्था नहीं हो सकेगी । अब विचारिये कि उस फलप्राप्तिको जाननेवाले विज्ञानकी प्रमाणता अन्य किसी प्रवृत्ति सामर्थ्यसे यदि जानी जावेगी तो वह दूसरा प्रवृत्तिसामर्थ्य भी फलप्राप्तिरूप होगा । वह फलप्राप्ति भी किसी ज्ञानसे जानी गयी होकर ही सामर्थ्य बन सकती है । नहीं जानी गयी हुई फलप्राप्ति तो प्रवृत्तिसामर्थ्य बन नहीं सकती है । अतिप्रसंग हो जायगा । यानी धूमके न जाननेपर भी पर्वतमें अग्निके निश्चय हो जानेका प्रसंग हो जायगा । अज्ञात पदार्थ तो किसीके ज्ञापक होते नहीं हैं । अतः फलप्राप्तिको पुनः जानने के लिये अन्य ज्ञानोंकी आवश्यकता पडेगी और उन ज्ञानोंको प्रमाणपना अन्य प्रवृत्तिसामर्थ्यांसे होगा । तब तो यहां अनवस्था दोषका प्रतिघात भला किसके द्वारा हो सकता है ? फलप्राप्तिके ज्ञानको प्रमाणन पूर्व ज्ञानसे और पूर्व ज्ञानका प्रमाणपना यदि प्रवृत्ति सामर्थ्यरूप फलप्राप्तिसे माना जायगा तो अन्योन्याश्रय दोष होगा । इस कारण परतः प्रामाण्यवादी नैयायिकों के यहां प्रवृत्तिसामर्थ्यसे प्रमाणपना व्यवस्थित नहीं हो सकता है । ..
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