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तत्वार्थचिन्तामणिः
प्रथमसे तो सामान्यज्ञान हो जाय और फिर गुण दोषोंसे उसमें प्रमाणपन या अप्रमाणपन उत्पन्न होता फिरे । इसका स्पष्टीकरण पूर्वमें कर दिया गया है।
स्वतः प्रमाणेतरैकांतवादिनं प्रत्याह ।
अब प्रामाण्यकी ज्ञप्तिका विचार चलाते हैं । नैयायिक तो प्रमाणपनेकी ज्ञप्तिका होना परतः ही मानते हैं । और मीमांसक सभी ज्ञानोंमें प्रमाणपना स्वतः जान लिया गया मानते हैं । प्रथम ही जो प्रमाणपन और अप्रमाणपनका स्वतः ही जानना मानते हैं, उन एकान्तवादियोंके प्रति आचार्य स्पष्ट उत्तर कहते हैं।
तन्नानभ्यासकालेपि तथा भावानुषंगतः। न च प्रतीयते ताहा परतस्तत्त्वनिर्णयात् ॥ ११०॥
वह प्रमाणपन और अप्रमाणपनकी स्वतः ज्ञप्ति होजानेका एकान्त करना ठीक नहीं है। क्योंकि यों तो अनभ्यास कालमें भी तिस प्रकार स्वतः ही प्रमाणपन या अप्रमाणपन हो जानेका प्रतंग होगा । किन्तु तिस प्रकार वहाँ स्वतः ज्ञप्ति होना प्रतीत नहीं हो रहा है। अनभ्यास दशामें तो अन्य ज्ञापकोंसे तत्त्व यानी उस प्रमाणपन या अप्रमाणपनका निर्णय हो रहा है। अर्थात्-अपने परिचित नदी, सरोवर आदिके जलकी गहराई के ज्ञानमें प्रमाणता स्वतः जानी जाती है। किन्तु देशान्तरमें जलकी गहराईके ज्ञानमें लठिया, परोपदेश आदि अन्य ज्ञापकोंसे प्रामाण्य जाना जाता है। अपरिचित औषधियों के ज्ञानमें भी प्रामाण्य पीछे फल देखनेपर जाना जाता है । इसी प्रकार चन्द्रमाका दूरसे छोटा दीखना या निकट देशमें दीखते रहना और दूरसे रेलकी समानान्तर पटरिओंका आगे सिकुड जाना दीखना तथा एकसे कूयेका भी नीचे की ओर संकोच स्थल दीखना एवं पित्तज्वरमें पेडेका कडुआ स्वाद लगना, आदिक अभ्यास दशाके असमीचीन ज्ञानोंमें अप्रमाण स्वतः ही जान ली जाती है। अपरिचित दशाके कुज्ञानोंमें अप्रमाणपना परसे जाना जाता है। किसी अपरिचित पदार्थको विना विचारे झट अप्रमाण समझलेना भी तो उचित नहीं है ।
खतः प्रामाण्येतरैकांतवादिनामभ्यासावस्थायामिवानभ्यासदशायामपि खत एव प्रमाणत्वमितरच स्यादन्यथा तदेकांतहानिप्रसंगात् । न चे प्रतीयतेऽनभ्यासे परतःप्रमाणत्वस्येतरस्य च निर्णयात् । न हि तत्तदा कस्यचित्तथ्यार्थावबोधकत्वं मिथ्यावभासित्वं वा नेतुं शक्यं स्वत एव तस्यार्थान्यथात्वहेतूत्यदोषज्ञानादर्थयाथात्म्यहेतृत्वगुणज्ञानाद्वा अनपवादप्रसंगाव । तथा च नाप्रमाणत्वस्यार्थान्यथाभावाभावज्ञानं बाधकं प्रमाणत्वस्य वार्थान्यथात्वविज्ञानं सिध्द्येत् । .
___प्रमाणपन और उससे भिन्न अप्रमाणपनका स्वतः ही ज्ञान होना माननेवाले एकान्तवादियों के यहाँ अभ्यासदशाके समान अनभ्यास दशामें भी स्वतः ही प्रमाणपन और इससे न्यारा अप्रमाणपन