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तमार्थचिन्ताममिः
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दुष्टे वक्तरि शब्दस्य दोषस्तत्संप्रतीयते । गुणो गुणवतीति स्याद्वक्त्रधीनमिदं द्वयम् ॥ १०५॥ यथावक्तृगुणैर्दोषः शब्दानां विनिवर्त्यते । तथा गुणोपि तद्दोषैरिति स्पृष्टमभीक्ष्यते ॥ १०६ ॥ यथा च वक्त्रभावेन न स्युदोषास्तदाश्रयाः। तद्वदेव गुणा न स्युर्मेघध्वानादिवब्रुवम् ॥ १०७ ॥
और मीमांसकोंके यहां जिस प्रकार शब्द स्वतः ही अपने वाच्यार्थ तत्त्वोंके सममझानेमें तत्पर हो रहे माने गये हैं, तिसी प्रकार शद्वाभास भी मिथ्यापदार्थोके स्वतः ही प्रतिपादक हो रहे माने जा सकते हैं । कोई अन्तर नहीं है । अनः आगममें प्रमाणपनके समान कुशास्त्रोंमें अप्रमाणपन भी स्वतः उत्पन्न हो जावेगा, दोषयुक्त वक्ताके होनेपर जैसे शद्बके दोष भले प्रकार प्रतीत हो रहे हैं। तिस ही कारण गुणवान् वकाके होनेपर शब्दके गुण भी स्वतंत्र न्यारे अच्छे दीख रहे हैं । इस प्रकार ये गुण, दोष दोनों ही वैसे वैसे वक्ताक अधीन हैं। अतः दोनों स्वतंत्र हैं । सतर्क अवस्थामें गुण और दोषोंका परीक्षण अन्य कारणों द्वारा न्यारा न्यारा प्रतीत हो रहा है। तथा जिस प्रकार समीचीन सत्यवक्ता पुरुषके गुणों करके शब्दोंके दोष निवृत्त हो जाते हैं, और अप्रामाण्यके कारण दोषोंके टल जानेसे आगमज्ञानमें स्वतः प्रामाण्य आजाता है । उसी प्रकार उस झूठ बकनेवाले वक्ताके दोषोंकरके शब्दके गुण भी निवृत्त हो जाते हैं । ऐसा स्पष्ट चारों ओर देखनेमें आरहा है। अतः प्रामाण्यके कारणपरभूतगुणोंके टल जानेसे वाच्यार्थ ज्ञानमें स्वतः अप्रमाणपना भी आजावेगा । फिर प्रमाणपनकी ही स्वतः उत्पत्तिका आग्रह क्यों किया जारहा है ! अप्रमाणपन भी स्वतः उत्पन्न हो जायगा और जिस प्रकार वेदको अपौरुषेय मानकर स्वतः ही प्रमाणपना बतानेवाले मीमांसक यों कह रहे हैं कि वेदका वक्ता न होनेके कारण उसके आधारपर होने वाले दोष नहीं हो सकेंगे। " न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी" अतः अप्रमाणपनके कारणों ( दोषों) के टल जानेसे स्वतः ही वेदमें प्रमाणपना आजाता है । उसी प्रकार हम भी कह सकते हैं कि मेघशब्द, वात्या ( आंधी ) के शब्द, समुद्रध्वनि आदिमें वक्ताके न होनेके कारण ही गुण भी नहीं हैं । अतः निश्चय कर उनमें अप्रमाणपना स्वतः उत्पन्न हो जावे । अर्थात् -अपौरुषेय मेघगर्जनका भी कोई वक्ता नहीं है । " आंख फूटी पीर गयी"। अतः उसके आधार पर होनेवाले गुगोंके अभाव हो जानेसे अप्रामाण्य स्वतः उत्पन्न हो जाओ । अपौरुषेयत्वको प्रमाणपनका कारण माननेपर तो घनगर्जन, बिजलीकी तडतडाहटमें प्रमाणपन भी प्राप्त हो जायगा। अतः आगममें दोनों ही स्वतः या प्रमाण,