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तत्त्वावलोकवार्तिके
लब्धार्थक्रियायाश्चलन जाग्रहशायां बाधकानुभवनमनुमन्यते, न पुनर्जाग्रहशोपलब्धार्थक्रियायाः स्वमादाविति युक्तं वक्तुं, सर्वथा विशेषाभावात् ।
जागृत अवस्थामें प्रतिपत्ताके अभिप्रायका चलन हो जाता है । अर्थात्-स्वप्नमें देखे हुये पदार्थोका जागती हुई अवस्थामें परामर्श करनेपर स्वप्नकी ज्ञप्तियां चलित होती हुई प्रतीत हो रही हैं । इस कारण स्वप्नज्ञान द्वारा अर्थक्रिया स्थिति होना नहीं माना जाता है । इस प्रकार बौद्धोंके कहनेपर तो हम जैन पूंछते हैं कि यह उस अभिप्रायका चलना क्या पदार्थ है ? बताओ । यदि बौद्ध यों कहें कि धिक्कार है कि मैंने स्वप्न अवस्थामें झूठी ही प्रतर्कणाएं की थीं, इस प्रकार जागृत अवस्थाओंमें प्रतीतियोंका उत्पन्न हो जाना ही स्वप्न ज्ञानोंके अभिप्रायोंका चलायमानपना है। आचार्य बोलते हैं कि इस प्रकार कहनेपर तो हम कहते हैं कि वह चलन तो स्वप्न आदिकमें भी विद्यमान है । अर्थात्-जागृत अवस्थामें पदार्थोंको देखकर पुनः स्वप्नमें अन्य प्रकार जाननेपर स्वप्नमें ऐसा प्रत्यय उत्पन्न होता है कि धिक्कार है, मैंने जागृत अवस्थामें झूठी ही तर्कणाएं कर ली थीं। इष्ट पुरुषके मर जानेपर पुनः स्वप्नमें वह कभी दीख जाता है तो थोडी देर तक स्वप्नमें यही ज्ञान होता रहता है कि हम बहुत भूलमें थे कि इसको मरा हुआ समझ बैठे थे । किन्तु ये तो वास्तविक जीवित ( जिन्दे ) हैं । अर्थक्रियाओंको कर रहे हैं। यहां बौद्धका पक्षपातसहित यह कहना युक्त नहीं हो सकता है कि स्वप्नमें देखे गये अर्थक्रियाका चलायमान होना तो जागती हुई अवस्थामें बाधकका अनुभव होना मान लिया जाय और फिर जागती दशामें देखे गये पदार्थकी अर्थक्रियाका चलायमानपना स्वप्न आदिमें बाधकज्ञानका अनुभव होना न माना जाय । अर्थात् -सुषुप्तकी अर्थक्रियाका बाधक यदि जागृत दशाका अनुभव है तो जागृत दशाकी अर्थक्रियाका बाधक स्वप्न दशाका अनुभव भी हो जाओ। सभी प्रकारोंसे कोई अन्तर नहीं है ।
स्वप्नादिषु बाधकप्रत्ययस्य सबाधत्वान तदनुभवनं तचलनमिति चेत्, कुतस्तस्य सबाधत्वसिद्धिः । कस्यचित्तादृशस्य सबाधकत्वदर्शनादि चेत्, नन्वेवं जाग्रदाधकप्रत्ययस्य कस्यचित्सबाधत्वदर्शनात् सर्वस्य सबाधत्वं सिध्येत् । - बौद्ध कहते हैं कि जागृत दशाके ज्ञानोंके बाधक प्रत्यय जो स्वप्न आदि अवस्थामें हो रहे हैं, वे स्वयं बाधासहित हैं। उस कारण स्वप्न अवस्थाओंमें उन बाधकज्ञानोंका अनुभव करना तो जागृत दशाकी अर्थक्रियाका चलायमानपना नहीं है । हां, जागृत दशाके ज्ञान बाधारहित हैं। अतः वे स्वप्न दशाके ज्ञानोंकी अर्थक्रियाको चलायमानपना साधदेते हैं । इस प्रकार बौद्धोंके कहनेपर तो हम बौद्धोंसे पूछते हैं कि स्वप्न आदि अवस्थाओं में हुये उन बाधकज्ञानोंके स्वयं बाधासहितपनेकी सिद्धि कैसे हुई समझी जाय ? बताओ । यदि तिस प्रकारके किसी एक ज्ञानको बाधकोंसे सहितपना देखनेसे स्वप्नके बाधकज्ञानोंका · बाध्यपना समझा जायगा, तब तो हम भी अवधारण पूर्वक कहते हैं कि इस प्रकार तो किसी किसी जागृत