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________________ तत्वार्यकोकवार्तिके ___ ननु च यथैकस्यार्थस्य सर्वसंख्यात्मकत्वं तथा सर्वार्थात्मकत्वमस्तु तत्कारणत्वादन्यथा तदयोगात् । ____ यहां किसीकी शंका है कि जैसे एक अर्थको सम्पूर्ण संख्याओंके साथ -तदात्मकपना सिद्ध माना है, तिसी प्रकार एक अर्थका सम्पूर्ण अर्थोके साथ तदात्मकपना हो जाओ । क्योंकि उन पौगलिक कार्योके कारण सभी पुद्गल हो सकते हैं । अन्यथा यानी तदात्मकपना यदि न माना जायगा तो उस कारणपनेका अयोग होगा अर्थात्-परस्परके नियत कार्यकारण भावका भंग हो जायगा । अथवा अनेक पदार्थोंमें ठहरती हुई और उनकी ओरसे आयी हुई त्रित्व आदि संख्या जब प्रकृत एक अर्थस्वरूप हो जाती है तो जिनकी अपेक्षासे तत्स्वरूप द्वित्व, त्रित्व, बहुत्व आदि संख्यायें प्राप्त हुई हैं, उन पदार्थोसे तदात्मक प्रकृत अर्थ हो जाना चाहिये । अन्यथा उन अनेक संख्याओंके तदात्मक होनेका भी प्रकृत अर्थमें योग नहीं बन सकेगा अर्थात् जैसे कि घट और पटमें द्वित्वसंख्या है, द्वित्व संख्या जब दोनोंसे अभिन्न है तो अभिन्न संख्यावाले घट, पट भी अभिन्न हो जाने चाहिये । यह कटाक्ष है। सर्व सर्वात्मकं सिध्यदेवमित्यतिसाकुलम् । सर्वकार्योद्भवे सत्त्वस्यार्थस्येदृक्षशक्तितः ॥ २६ ॥ इस प्रकार शंकाकारके कथन अनुसार सभी पदार्थ अपने अपनेसे न्यारे सभी दूसरे पदार्थों के साथ तदात्मक सिद्ध हो जायेंगे । क्यों जी ! इस ढंगसे तो अतीव व्याकुलता हो जायगी। किसी भी वादी विद्वान्को ऐसी पदार्थोंकी संकरता इष्ट नहीं हो सकेगी। दूसरी बात यह है कि सम्पूर्ण कार्योंके उत्पन्न करानेमें द्रव्यदृष्टिसे सत्त्व अर्थके इस प्रकारकी शक्तियां मानी गयी हैं। पर संग्रहनय तो सर्वर जड, चेतन, पदार्थोको एकम एक कह रही है । सभी सर्वस्वरूप हैं। ____ भवदपि हि सर्व सर्वकार्योद्भवे शक्तं सर्वकार्योद्भावनशक्त्यात्मकं सिध्येद्यथा सर्वसल्यामत्ययविषयभूतं सर्वसंख्यात्मकमिति शक्त्यात्मना सर्वे सर्वात्मकत्वमिष्टमेव । सम्पूर्ण पदार्थ सम्पूर्ण कार्योको उत्पन्न करनेमें समर्थ होते हुये भी सम्पूर्ण कार्योके उद्भावन शक्तिसे तदात्मक होरहे सिद्ध हो सकेंगे, जैसे कि सम्पूर्ण संख्याज्ञानोंके विषयभूत हो रहे पदार्थ सम्पूर्ण संख्याओंसे तदात्मक हैं। इस प्रकार सम्पूर्णपदार्थ शक्तिस्वरूप करके सर्वके साथ तदात्मक पनेसे इष्ट किये गये हैं, कोई क्षति नहीं है। भावार्य-जैन सिद्धान्तमें पौद्गलिक पदार्थ तो सभी पुद्गलोंसे शक्तिरूप करके तदात्मक हैं ही। किन्तु जड और चेतन, या पुद्गल और जीव तथा मूर्त, अमूर्त, आदि विरोधी पदार्थ भी द्वित्व, त्रित्व, आदि संख्यायें अस्तित्व, · द्रव्यत्व, आदि धर्मोकी अपेक्षासे तदात्मक हो रहे हैं। किसी भी अपेक्षासे एकता मिलानेपर अर्थोंमें तादात्म्य मान लिया जाता है। " तो ते वा आत्मानो यस्य स तदात्मा तस्य मावस्तादाम्य " इस.निरुक्तिसे अनेक पदार्थीका
SR No.090496
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 2
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1951
Total Pages674
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size21 MB
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