________________
तत्वार्यकोकवार्तिक
बाधक प्रमाण न होनेके कारण वस्तुभूतपना है। ऐसा कहने पर तो हम भी कहते हैं कि तिस ही बाधक प्रमाण न होनेके कारण शद्वोंके वाच्यअर्थोको भी वास्तविकपना हो जाओ ! इस प्रकार शद्धका वाच्यार्थ सिद्ध हो जानेपर आप बौद्धोंको अपनी कही गयी " अनादिवासनोद्भूत" इस कारिकासे विरोध हुआ । अथवा बौद्ध इधर तो शब्दका वाच्यअर्थ नहीं मानते हैं और उधर अनेक ग्रन्थों या वक्ताओंद्वारा स्वकीय तत्त्वका प्रतिपादन कराते हैं । अतः अपने ही प्रतिपादितसे अपना ही विरोध हुआ । उस विरोध दोषका अभाव आप बौद्ध नहीं कर सकते हैं।
यदप्युक्तं प्रत्यक्षे सकलधर्मरहितस्य स्वलक्षणस्य प्रतिभासान तत्रैकमनेकं वा रूपं वा परस्परसापेक्षं वा निरपेक्षं वा तद्रहितं वा प्रतिभातीति । तदपि मोहविलसितमेव, अनेकांता मकवस्तुमतीतेरपह्ववात् । को ह्यमोहविडंवितः प्रतिभासमानमावालमबाधितमेकमनेकाकारं वस्तु प्रत्यक्षविषयतयानाहत्य कथमप्यप्रतिभासमानं ब्रह्मतत्त्वमिव स्खलक्षणं तथा आचक्षीत ? अतिप्रसंगात् ।
और भी जो बौद्धोंने पहिले " ननु चाध्यक्ष " इत्यादि ग्रन्थसे कहा था कि प्रत्यक्षमें संपूर्ण धर्मोसे रहित कोरे स्खलक्षणका प्रतिभास होता है। अतः उसमें एक अथवा अनेकरूप या परस्पर अपेक्षा रखते हुये या नहीं अपेक्षा रखते हुये अथवा उनसे रहित भी कोई स्वरूप नहीं प्रतिभास रहा है, इस प्रकार वह कहना भी गाढ मोह (मूर्छा) में फसकर चेष्टा करना ही है। क्योंकि अनेक धर्मस्वरूप वस्तुकी हो रही प्रतीतिको छिपाया गया है। कौन ऐसा मोहकी विडम्बनासे रहित विचार शील लौकिक या परीक्षक होगा जो कि बालगोपालोंतक प्रतिभास रही बाधारहित एक अनेक आकारवाली वस्तुका प्रत्यक्षके गोचरपनेसे आदर न कर किसी भी प्रकारसे नहीं दीखते हुये ब्रह्माद्वैततत्त्वके समान बौद्ध अभिमत स्वलक्षणको तिस प्रकार धर्मोसे रहित कहता फिरे अर्थात् कोई भी नहीं है । यदि प्रमाणसे जाने गये पदार्थका तिरस्कार कर प्रमाणसे न जाने गये पदार्थकी कल्पना की जायगी तो चाहे जिस अण्ट सण्ट पदार्थकी सत्ता सिद्ध हो जायगी । अद्वैतवादियोंका माना गया ब्रह्मतत्त्व भी बौद्धोंको मानना पडेगा, तथा सांख्यके भी नित्य माने गये प्रकृति, आत्मा, आदि तत्त्व अंगीकार करने पडेंगे, यह अतिप्रसंग होगा।
तथानुमानादागमाच्च भावस्यैकानेकरूपविशिष्टस्य प्रतीयमानत्वान्न "भावा येन निरूप्यते तद्रूपं नास्ति तत्वत । " इति वचनं निःप्रमाणकमेवोररीकार्य, यतः स्वरूपवचनं सूत्रे मिथ्या स्यात् । यथा च प्रत्यक्षमनुमानमागमो वानेकांतात्मकं वस्तुप्रकाशयति सुनिर्णीताबाघं तथाग्रे प्रपंचयिष्यते । किंच।। __इस सूत्रकी आठवीं वार्तिकका उपसंहार करते हैं प्रत्यक्षसे तो अनेकधर्म आत्मक वस्तु सिद्ध कर दी है तथा अनुमानप्रमाण और आगमप्रमाणसे भी पदार्थ एक और अनेकरूपोंसे विशिष्ट होते हुये प्रतीत हो रहे हैं । अतः बौद्धोंका यह कथन करना ठीक नहीं है कि " पदार्थ जिस