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________________ तत्वार्थ लोकवार्तिके अभावोंको नहीं दिखलाता है । यदि जीव आदि वस्तुओंके समान तुच्छ अभावोंको भी सम्यग्ज्ञान दिखलाता होता तो उस तुच्छ अभावको भावरूपपनेका प्रसंग हो जाता। जो कि वैशेषिकोंने भी नहीं माना है । हां ! वह प्रमाण सर्व स्थलोंपर सब कालमें सभी प्रकारोंसे वस्तुस्वरूप अभावको ही दिखलाता है और तुच्छ अभावके तिस प्रकार वस्तुस्वरूप अभावको जता देता है। इस प्रकार उसके कथन करने में कोई दोष नहीं है । अर्थात् तुच्छ अभाव तो कोई पदार्थ नहीं है। हां ! तुच्छ अभा का अभाव जैसे तैसे कठिनतापूर्वक किसी अपेक्षासे वस्तुरूप कहा जा सकता है । तुच्छाभावके न होनेपर ही तुच्छाभावाभावके ज्ञान और शद्वके गोचरपनेसे ऐसा मानना पडा है । अन्यथा नहीं । नन्वेवं तुच्छाभावसदृशस्या ( शङ्खस्या ) नर्थकत्वे प्रयोगो न युक्तोऽतिप्रसंगात्, प्रयोगे पुनरर्थः कश्चिद्वक्तव्यः स च बहिर्भूतो नास्त्येव च कल्पनारूढस्त्वन्यव्यवच्छेद एवोक्तः स्यात्तद्वत् सर्वशद्वानामन्यापोहविषयत्वे सिद्धेर्न वास्तवाः शद्धार्था इति चेत् नैतदपि सारं, अभावशद्वस्याभावसामान्यविषयत्वात्तस्य विवादापन्नत्वात् । सर्वो हि किमयमभावो वस्तुधर्मः किं वा तुच्छ इति प्रतिपद्यते न नास्तीति प्रत्येयोर्थोऽभावमात्रे, तत्र च वस्तुधर्मतामभावस्याचक्षाणाः स्याद्वादिनः कथमभावशद्धं कल्पितार्थे स्वीकुर्युः । स्वयं तुच्छरूपतां तु तस्य निराकुर्वेतः परैरारोपितामाशंकितां बानुबदतीत्युक्तप्रायम् । - पुनः बौद्धोंका अवधारण है कि इस प्रकार तुच्छ अभाव शद्वको व्यर्थ माननेपर तो उसका प्रयोग करना ही युक्त नहीं | अथवा शद्बोंकी प्रवृत्ति सदृश पदार्थोंमें होती है । संकेतग्रहण करते समय सन्मुख होरहे पदार्थका प्रत्यक्ष ही हो रहा है । जब कि तुच्छ अभाव सदृश कोई पदार्थ ही नहीं है, तो वह शद्ब व्यर्थ है । ऐसी दशामें उसका प्रयोग करना युक्त नहीं है । अन्यथा अतिप्रसंग हो जायगा । अर्थात् जब ग ड द, कुथ, विथ आदि निरर्थक aaiका प्रयोग करना भी आवश्यक हो जायगा । यदि तुच्छ अभावका वचन प्रयोग करोगे तो फिर उसका कोई वाच्यअर्थ कहना ही पडेगा और वह घट, पट, आदिके समान बहिरंग वस्तुभूत अर्थ होता नहीं है, तब तो झूठी कल्पनामें आरोपा गया अन्य व्यवच्छेद ही तुच्छ पदार्थ अभाव शद्वसे कहा जा सकेगा । उस अभाव शद्वके समान सब शोंका अन्यापोहरूप अर्थको विषय करनापन सिद्ध हो जानेसे सभी शङ्खकेि वाच्यअर्थ वस्तुभूत नहीं ठहरते हैं । अब आचार्य कहते हैं कि ऐसा कहोगे सो यह बौद्धोंका स्वकीय मतका अवधारण भी निस्सार है । क्योंकि अभाव शद्ब निरर्थक नहीं है, वह अभाव सामान्यको विषय करता है। हां ! सामान्य अभाव क्या पदार्थ है ? वह विवाद में पडा हुआ है । उसका विचार कर लीजिये । सर्व ही वादी विद्वान् अभावको क्या वस्तुका धर्म है ? अथवा क्या तुच्छ स्वभाव है ? इस प्रकार विवाद उठाकर जान लेते हैं | अभावका " नहीं " नहीं हैं इत्यादि प्रकारसे अभावसामान्यमें अर्थ समझ लेना चाहिये । तिन विद्वानों में अभावको वस्तुका धर्मपना कह रहे स्याद्वादी पण्डित अभाव शद्बको कल्पित अर्थवाला कैसे स्वीकार 1 ५२४
SR No.090496
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 2
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1951
Total Pages674
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size21 MB
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