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तत्वार्थलोकवार्तिके
अर्थात् इन लौकिक बातोंमें वैयाकरण, नैयायिक, मीमांसक, बौद्ध आदि कोई भी विवाद नहीं उठाते हैं । (२) यह पदार्थ किसका है ऐसा प्रश्न होनेपर उसके अधिपतिपनेका निवेदन करना स्वामित्व है । (१) यह किस कारणसे बना है ! ऐसा प्रश्न करनेपर तिस प्रकार उत्तरके वचनसे कथन करने योग्यको साधन कहते हैं। (१) यह पदार्थ कहां निवास करता है ! इस प्रकार चोध करनेपर तो जो उत्तर कहा जाता है उसको अधिकरण समझते हैं। (५) यह कितनी देर तक ठहरेगा ? ऐसा कथन करनेपर जो प्रत्युत्तरका वचन है, वह स्थिति है। (६) यह कितने प्रकारका है ! इस प्रकारका प्रश्न होनेपर जो तत्त्वज्ञानियोंका वचन है, वह विधान कहा गया है । अधिगमका साक्षात्कारण ज्ञान है और उससे अव्यवहित पूर्ववर्ती शद्ध उसका प्रधान कारण है, जो कि अज्ञानस्वरूप जड है । अतः छहोंके लक्षण करते समय वचन कहनेको प्रधान माना गया है । अर्थात् शब्दात्मक और ज्ञानात्मक निर्देश आदिक उपाय अधिगमके कारण हैं, यह समझ लेना चाहिये। ___किं कस्य केन कस्मिन् कियचिरं कतिविषं वा वस्तु तद्रूपं चेत्यनुयोगे कात्स्येन देशेन च तथा प्रतिवचनम् । निर्देशादय इति वचनात् । प्रवक्तुः पदार्थाः शद्वात्मकास्ते प्रत्येयाः तथा प्रकीर्तितास्तु सर्वे सामर्थ्यांचे ज्ञानात्मका गम्यन्तेऽन्यथा तदनुपपत्ता, सत्यज्ञानपूर्वका मिथ्याज्ञानपूर्वका वा ? शद्धा निर्देशादयः सत्या नाम सुषुप्तादिवत् । नाप्यसत्या एव ते संवादकत्वात् प्रत्यक्षादिवत् ।
क्या वस्तु है ? किसकी वस्तु है ? किससे बनी हुयी वस्तु है ? किसमें स्थित हो रही है ? कितनी देरतक ठहरेगी और कितने प्रकारकी वस्तु है ? अथवा उस वस्तुसे तदात्मक हो रहा स्वभाव क्या है ? किसका है ! इस प्रकारके प्रश्न होनेपर पूर्णरूपसे और एकदेशसे तिस प्रकारके उत्तररूप प्रतिवचन कहना निर्देश आदिक हैं । इस प्रकार मूलसूत्रमें कहा है। प्रकृष्ट वक्ताके वे निर्देश आदिक पदार्थ शब्दस्वरूप समझने चाहिये और तिस प्रकार कहे गये वे सभी अधिगम करनेवाले निर्देश आदिक पदार्थ सामर्थ्यसे श्रोताके ज्ञानस्वरूप समझे जाते हैं। अन्यथा वह कथनोपकथन व्यवहार नहीं बन सकता है। भावार्थ-"तद्वचनमपि तद्धेतुत्वात्" इस श्रीमाणिक्यनन्दी आचार्यके सूत्र करके वचनको भी प्रमाणपना सिद्ध किया है । वचन वक्ताके प्रमाणज्ञानके कार्य हैं और श्रोताके प्रमाणज्ञानके कारण हैं । कारणका कार्यमें और कार्यका कारणमें उपचार करनेसे शब्द भी प्रमाण हो जाता है। यहां प्रकरणमें सत्यवक्ताके शवोंको सुनकर श्रोताको निर्देश, स्वामिपन, आदि ज्ञान हो जाते हैं । इस प्रकार वाच्यवाचकभाव और गम्यगमकभावकी सामर्थ्यसे निर्देश आदिक शब्दस्वरूप और ज्ञानस्वरूप हैं । वे निर्देश, आदिक अकेले वक्ता या केवल श्रोताके भी ज्ञानस्वरूप और शब्दस्वरूप हो जाते हैं । सत्यज्ञानको कारण मानकर उत्पन्न हुए निर्देश आदिक शब्द सत्य बोले जाते हैं और पूर्ववर्ती मिथ्याज्ञानको कारण मानकर हुए निर्देश आदिक शद्ध