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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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चट विशिष्टबुद्धियोंको उपजा देती हैं । चाक्षुषप्रत्यक्षमें उन लम्बाई, चौडाई, रङ्ग, चपटापन आदि अवास्तविक सूक्ष्म अंशोंका भी प्रतिभास हो चुका है। जो कि यथार्थ नहीं हैं । यही ढङ्ग रसना इन्द्रियमें भी समझ लेना । अधिक भूख लगनेपर जो घेवरका स्वाद आता है वह तृप्त होनेपर नहीं। उस एक ही पदार्थको खाते खाते मध्यमें स्वाद लेनेकी अनेक न्यारी न्यारी अवस्थायें गुजरती हैं। एक तोले वजनवाले मोटे कौरके मात्र ऊपरले कागज समान पतले भागका ही जिह्वासे स्वाद आता है। बहुभाग तो यों ही गटक कर पेटमें ढकेल दिया जाता है। रंधे हुये ऊपर नीचे लग रहे ५०० चावलोंके कौरमें कतिपय स्वाद हैं, किन्तु सैकडों पौवाले चावलकी प्रत्येक परतका स्वाद भी न्यारा है।
यों सूक्ष्मतासे विचारनेपर एक ही वस्तुमें भिन्न २ परिस्थितिके हो जानेपर दशों प्रकारके स्वाद अनुभूत हो रहे हैं। पेडा खानेके पीछे 'सेवफलका वैसा मीठा स्वाद नहीं आता है जैसा कि पेडा खानेके पहिले आ सकता है, भले ही जीभको खुरच लिया जाय। बहुतसे पुरुषोंका कहना है कि बाल्यावस्थामें फल, दुग्ध, चणक, मिष्टान्न आदिके जैसे स्वाद आते थे वैसे युवा अवस्थामें आते ही नहीं हैं। कुमार अवस्थाकेसे स्वाद बूढेपनमें नहीं मिलते हैं।
यद्यपि उस अवस्थाकी लार, दातोंसे पीसना, चबाना उदराग्निसन्दीपन, बुभुक्षा, आदिसे भी स्वाद लेनेमें अन्तर पड जाता है। फिर भी कहना यही है कि फल आदिके ठीक रसका ज्ञान किस अवस्थामें हुआ था ? सो समझाओ।
एक ही पदार्थको खाकर जब कि बालक युवा, रोगी, आदि सभीने अपने रासन प्रत्यक्षोंमें स्वादके अनेक विशेषको जान लिया है, तब ऐसी दशामें सबके रासन मतिज्ञानोंको सर्वाङ्गरूपसे प्रमाण नहीं कहा जा सकता है। .. ... स्पर्शन इन्द्रियसे उत्पन्न हुआ सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष भी मोटे मोटे अंशोंमें प्रमाण है। ज्ञात कर लिये मये सूक्ष्म अंशोंमें नहीं। तर्जनी अंगुलीके ऊपर मध्यमा अंगुलीको चढालो, फिर अग्रिम दो पोटराओंकी बीच सन्धिमें किसी चने बराबर एक गोलीको चौकी या दूसरे हाथकी हथेलीपर धरकर डुलाओ। तुमको दो गोली मालूम पडेंगी।
हम लोगोंको आपेक्षिक ज्ञान अधिक होते हैं । ज्वरी पुरुषको वैद्यका शरीर शीतल प्रतीत होता है। जब कि वैद्यको ज्वरीका हाथ उष्ण ज्ञात हो रहा है । ठण्डे पानीमें अंगुली डालकर कुछ उष्ण जलमें अंगुली डाल देनेसे उष्ण स्पर्शका प्रतिभास होता है । साथ ही अधिक गर्म जल में अंगुली डुबोकर पुनः उसी किञ्चित् गर्म जलमें अंगुली डाल देनेसे शीतस्पर्शका ज्ञान होता है।
___ अधिक मिरच खानेवालेको स्वल्प मिरच पडे व्यंजनमें चिरपरा स्वाद नहीं आता है। किन्तु दूध पीनेवाले बालकका उस स्वल्प मिरचवाली तरकारीसे पूरा मुंह झुलस जाता है ।
हम लोगोंके शरीरमें अन्तरंग बहिरंग कारणोंसे पदार्थके स्पर्शको जाननेकी न्यारी न्यारी