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________________ ४५८ तत्वार्यश्लोकवार्तिके ( व्याप्ति ) जाना जा चुका है। तिसी प्रकार सभी स्थलोंपर नहीं बोला गया भी स्यात्कार सभी पदार्थोके अनेकान्तात्मकपनेकी व्यवस्था करा चुकनेकी सामर्थ्यसे एकान्तके व्यवच्छेद करनेके लिये क्यों नहीं प्रतीत हो जायगा ? अर्थात् एवके समान स्यात्कार भी बोलो चाहे न बोलो ! प्रतीत हो ही जाता है । संसारमें कोई भी पदका अर्थ अथवा वाक्यका अर्थ ऐसा नहीं है, जो सभी प्रकारोंसे एकान्तस्वरूप ही होवे । क्योंकि सर्वथा एकान्त माननेपर लोकमें आबाल वृद्ध प्रसिद्ध हो रही प्रमाणसिद्ध प्रतीतियोंसे विरोध आवेगा । हां ! सुनयोंकी अपेक्षासे अर्पित किया गया कथञ्चित् एकान्त स्वरूप पदार्थ या वाक्यार्थ तो अनेकान्तस्वरूप ही है । क्योंकि सुनय अन्य धर्मोकी अपेक्षा रखती हैं, तिस कारण अस्ति, नास्ति आदि सात भेदवाले प्रमाणबोधक वाक्य और नयवाक्यमें स्यात् यह शद्ध लगाना युक्त है । अथवा उस स्यात् शबके लिये दूसरा कोई कथञ्चित् आदि शब्द चाहे वह कण्ठोक्त कहा गया या सुना जा चुका हो अथवा अर्थापत्तिसे अनुमान द्वारा समझ लिया गया हो । अवधारण करनेवाले एवकारके समान वह प्रत्येक पद और वाक्यमें जोड देना चाहिये । किं पुनः प्रमाणवाक्यं किं वा नयवाक्यम् ? सकलादेशः प्रमाणवाक्यं विकलादेशो नयवाक्यमित्युक्तम् । कः पुनः सकलादेशः को वा विकलादेशः ? अनेकान्तात्मकस्य वस्तुनः प्रतिपादनं सकलादेशः, एकधर्मात्मकवस्तुकथनं विकलादेश इत्येके, तेषां सप्तविधप्रमाणनयवाक्यविरोधः। सत्यासत्त्वावक्तव्यवचनानामेकैक धर्मात्मजीवादिवस्तुप्रतिपादनप्रवणानां सर्वदा विकलादेशत्वेन नयवाक्यतानुषंगात् क्रमार्पितोभयसदवक्तव्यासदवक्तव्योभयावक्तव्यवचनानां वानेकधर्मात्मकवस्तुप्रकाशिनां सदा सकलादेशत्वेन प्रमाणवाक्यतापत्तेः। न च त्रीण्येव नयवाक्यानि चत्वार्येव प्रमाणवाक्यानीति युक्तं सिद्धान्तविरोधात् । फिर आप स्याद्वादी यह बतलाओ ! कि प्रमाणवाक्य क्या है ? और आपके यहां नयवाक्य क्या है ? इसके उत्तरमें आचार्य कहते हैं कि वस्तुके सम्पूर्ण अंशोंको कथन करनेवाला सकलादेश तो प्रमाणवाक्य है और वस्तुके विकल होरहे थोडे अंशको कहनेवाला विकलादेश नयवाक्य है। इस बातको पहिले भी हम कह चुके हैं। अब फिर प्रश्न है कि वह सकलादेश क्या है ? और चिकलादेश क्या है ? बताओ ! इसके उत्तरमें कोई विद्वान् ऐसा कहते हैं कि अनेक धर्मोके साथ तदात्मक हो रही वस्तुका निरूपण करना सकलादेश है और एक धर्मस्वरूप वस्तुका निरूपण करना विकलादेश है । इस पर आचार्य कहते हैं कि उनके यहां सात प्रकारके प्रमाणवाक्य और सात प्रकारके नयवाक्य बोलनेका विरोध हो जायगा । सात भंगोंमेंसे सत्व, असत्त्व, और अवक्तव्य इन अकेले अकेले तीन वचनोंको विकलादेशी हो जानेके कारण नयवाक्यपनेका प्रसंग होगा। क्योंकि ये तीन वचन एक एक धर्मस्वरूप जीव आदि वस्तुके प्रतिपादन करनेमें सदा तत्पर हो रहे हैं। स्याद्वाद सिद्धान्त के अनुसार प्रमाण सप्तभंगीमें इन तीनको भी प्रमाणवाक्यपना सिद्ध है। अतः
SR No.090496
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 2
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1951
Total Pages674
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size21 MB
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