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तत्वार्यश्लोकवार्तिके
अर्थकी निवृत्तिके लिये पद और वाक्यमें अवधारण करना चाहिये । यह सिद्धान्त युक्तियोंसे सिद्ध कर दिया गया है।
ननु च सदेव सर्वमित्युक्ते सर्वस्य सर्वथा सत्त्वमसक्तिः सत्त्वसामान्यस्य विशेषणत्वाद्वस्तुसामान्यस्य च विशेष्यत्वात् तत्सम्बन्धस्य च सामान्यादेवकारेण द्योतनात् । तथा च जीवोऽप्यजीवसत्त्वेनास्तीति व्याप्तं स्वप्रतियोगिनो नास्तित्वस्यैवास्तीति पदेन व्यवच्छेदात् जीव एवास्तीत्यवधारणे तु भवेदजीवनास्तिता । नैव सेष्टा प्रतीतिविरोधात् । ततः कथमस्त्येव जीव इत्यादिवत्सदेव सर्वमिति वचनं घटत इत्यारेकायामाह:
यहां और एक अच्छी शंका है कि “ सदेव सर्व " सम्पूर्ण वस्तु सत् ही है, इस प्रकार एव लगाकर कह चुकनेपर तो सभी प्रकारोंसे सबको सत्पनेका प्रसंग होता है। क्योंकि सामान्यरूपसे सत्पना विशेषण है और सामान्यरूपसे सम्पूर्ण वस्तुएं विशेष्य हैं तथा उन विशेषण और विशेष्योंके सम्बन्धका सामान्यरूपसे एवकार करके द्योतन हो गया है । अतः सबको सर्वथा सत्त्व प्राप्त हुआ और तैसा होनेपर जीव भी अजीवकी सत्तासे सत् ( विद्यमान ) है, ऐसा प्राप्त हुआ अथवा जीव भी अजीवकी सत्तासे व्याप्त ( घिर गया ) हो गया । " एव अस्ति " इस प्रकार एव पद करके तो अपने अस्तित्वके प्रतियोगी होरहे नास्तिपनकी ही व्यावृत्ति होगी । जीवमें अजीवके सत्त्वकी व्यावृत्ति तो नहीं हो सकती है और आप जैन यदि जीव ही है, इस प्रकार मध्यमें अवधारण लगाओगे, तब तो अजीव पदार्थकी नास्ति हो जायगी और वह तो इष्ट नहीं है । क्योंकि प्रतीतियोंसे विरोध पडेगा । जीवसे भिन्न घट, पट, आदि अजीवोंकी पशुओंतक को प्रतीति हो रही है । तिस कारण जीव है ही, घट ही है, इत्यादि वचनोंके समान सत् ही सम्पूर्ण हैं, ऐसा जैनोंका प्रयोग करना कैसे युक्तिसिद्ध घटित होगा ? अर्थात् एवकार लगाकर वचनप्रयोग करना नहीं घटता है। इस प्रकार आशंका होनेपर आचार्य महाराज स्पृष्टरूपसे उत्तर कहते हैं;-उसको एकाग्रचित्त लगाकर सुनिये समझियेगा।।
सर्वथा तत्प्रयोगेऽपि सत्त्वादिप्राप्तिविच्छिदे । स्यात्कारः संप्रयुज्येतानेकान्तद्योतकत्वतः ॥ ५४॥
उस एवकारके प्रयोग करनेपर भी सभी प्रकारोंसे सत्त्व आदिकी प्राप्तिका विच्छेद करनेके लिये वाक्यमें स्यात्कार शद्बका प्रयोग करना चाहिये। क्योंकि वह स्यात् शब्द अनेकान्तका द्योतक है।
. स्यादस्त्येव जीव इत्यत्र स्यात्कारः संप्रयोगमर्हति तदप्रयोगे जीवस्य पुद्गलाद्यस्तित्वेनापि सर्वप्रकारेणास्तित्वमाप्तर्विच्छेदाघटनात् तत्र तथाशद्धनामाप्तित्वात् । प्रकरणादेर्जीवे पुदलास्तित्वव्यवच्छेदे तु तस्याशद्वार्थत्वं तत्प्रकरणादेरशद्वत्वात् । न चाशद्वादर्थ प्रतिपत्तिर्भवन्ती शादी युक्तातिप्रसंगात् ।