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तत्वार्यचिन्तामणिः
अतः तीन प्रमाणोंसे जान ली गयी वस्तुके अंशमें तो उस नयकी प्रवृत्ति न हुयी । इस प्रकार किन्हीं तर्क करनेवालोंने भाषण किया था । ग्रन्थकार कहते हैं कि सो युक्त ही है, क्योंकि ति प्रकार हम इष्ट करते हैं। यानी मति, अवधि और मन:पर्ययसे जान ली गयी वस्तुके अंशमें नयकी प्रवृत्ति नहीं है 1
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न हि मत्यवधिमन:पर्ययाणामन्यतमेनापि प्रमाणेन गृहीतस्यार्थस्यांशे नयाः प्रवर्तन्ते तेषां निःशेषदेशकालार्थगोचरत्वात् मत्यादीनां तदगोचरत्वात् । न हि मनोमतिरप्यशेषविषया करणविषये तज्जातीये वा प्रवृत्तेः ।
जो अर्थ मति, अवधि, और मन:पर्यय, इन तीन ज्ञानोंमेंसे किसी एक प्रमाणसे भी ग्रहण कर लिया गया है । उस अर्थके अंशमें नयज्ञान नहीं प्रवर्तते हैं, क्योंकि वे नयज्ञान संपूर्ण देश, काल, सम्बन्धी अर्थके अंशोंको विषय करते हैं। जैसे कि द्रव्यार्थिक नयसे सभी नित्य हैं, पर्यायार्थिक नयसे सब पदार्थ अनित्य हैं । किन्तु मति आदि यानी मति, अवधि, मन:पर्यय, ये तीनों ज्ञान परिमित देश aroin अर्थोको जानते हैं, उन सम्पूर्ण देश कालोंके अर्थोको ये तीन ज्ञान विषय नहीं करते हैं । मन इन्द्रियसे उत्पन्न हुआ मानस मतिज्ञान भी सम्पूर्ण देश कालके विषयोंको नहीं जान पाता है। क्योंकि इन्द्रियोंके योग्य विषयमें अथवा उनकी जातिवाले अतीन्द्रिय विषयोंमें भी मानस मतिज्ञान प्रवर्तता है। पुद्गल, धर्मद्रव्य, संसारी आत्मा, आदिके संपूर्ण देश कालवर्ती अंशोंमें परोक्षरूपसे भी मानस मतिज्ञान नहीं प्रवर्तता है। भले ही धर्म आदिको कुछ अंशोंसे जानले, किन्तु नैगम, संग्रह, आदि नयोंकी प्रवृत्तिका क्षेत्र तो बहुत बडा माना गया 1
त्रिकाल गोचराशेषपदार्थांशेषु वृत्तित: । केवलज्ञानमूलत्वमपि तेषां न युज्यते ॥ २६ ॥ परोक्षाकारतावृत्तेः स्पष्टत्वात् केवलस्य तु ।
श्रुतमूला नयाः सिद्धा वक्ष्यमाणाः प्रमाणवत् ॥ २७ ॥
- तीनों काल संबन्धी विषय होरहे संपूर्ण पदार्थोके अंशोंमें प्रवृत्ति होनेके कारण उन नयज्ञानोंका मूल कारण केवलज्ञान मान लिया जाय, यह भी युक्त नहीं है। क्योंकि अपने विषयोंकी परोक्ष ( अस्पष्ट ) रूपसे विकल्पना करते हुए नयज्ञान वर्त रहे हैं । किन्तु केवलज्ञानका प्रतिभास तो स्पष्ट होता है । केवलज्ञानको मूल भित्ति मानकर यदि नयज्ञानोंकी प्रवृत्ति होती तो नयोंके द्वारा पूर्ण विशद प्रतिभास हो जानेका प्रसंग आवेगा । नयज्ञान तो विषयोंको विशद जानता नहीं है । अतः परिशेष न्यायसे श्रुतज्ञानको मूलकारण मानकर ही नयज्ञानोंकी प्रवृत्ति होना सिद्ध माना गया है । प्रमाणों के समान नयके इस सिद्धान्तको भविष्य ग्रन्थ में स्पष्ट कहेंगे अथवा जैसे समीचीन युक्तियों से