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तत्त्वार्थचिन्तामाणः
में भी दर्शनमोहनीय कर्मके उदयसे तीन प्रकारके मिथ्यादर्शन हो जाते हैं, उनका निवारण सम्यक् पदसे हो जाता है । कहीं कहीं सहज और अधिगमज भेदसे दो प्रकारका मिथ्यादर्शन माना है तथा अन्यत्र एकान्त, विपरीत, विनय, संशय और अज्ञान ऐसे पांच प्रकारका माना है । विस्तार करनेपर मिथ्यात्वके संख्यात और असंख्यात तथा व्यक्तिभेदसे अनन्त भेद भी हो जाते हैं। इन सबका सम्यक् शब्दसे व्यवच्छेद हो जाता है । सम्यक्पद इसी बातको समझाता है ।
ज्ञानमप्येवमेव सम्यगिति निवेदितं, तस्य मोहादिव्यवच्छेदेन तत्त्वार्थाध्यवसायस्य व्यवस्थापनात् । तर्हि सूत्रकारण सम्यग्ज्ञानस्य लक्षणं कस्माद्भेदेन नोक्तम् -
इसी प्रकार ज्ञान भी सम्यक् इस विशेषणसे विशिष्ट है, ऐसा निरूपण कर दिया गया है। क्योंकि मोह, संशय, विपर्यासके व्यवच्छेद करके तत्त्वार्थोंका अध्यवसाय करनेवाले उस ज्ञानको सम्यग्ज्ञानपना व्यवस्थित है । ज्ञानके मोह आदि दोष न्यारे हैं और श्रद्धानके मोह आदि दोष भिन्न हैं । यहां नाम एक होनेसे अर्थ एक नहीं है । हां, निरूपण करनेकी प्रक्रिया एकसी होजाती है।
तब तो बतलाइये कि सम्यग्दर्शनके लक्षणके समान सम्यग्ज्ञानका लक्षण भी सूत्र बनानेवाले श्रीउमास्वामी महाराजने भिन्न रूपसे क्यों नहीं कहा ? इसका उत्तर श्रीविद्यानन्द आचार्य देते हैं
सामर्थ्यादादिसूत्रे तन्निरुक्त्या लक्षितं यतः। चारित्रवत्ततो नोक्तं ज्ञानादेर्लक्षणं पृथक् ॥७॥ यथा पावकशदस्योच्चारणात् सम्प्रतीयते। .. तदर्थलक्षणं तद्वज्ज्ञानचारित्रशदनात् ॥ ८॥ .. .. .. ज्ञानादिलक्षणं तस्य सिद्धेर्यत्नान्तरं वृथा। ..
शद्वार्थाव्यभिचोरण न पृथग्लक्षणं क्वचित् ॥ ९॥ जिस कारणसे कि उस यथार्थनामा चारित्र शब्दकी निरुक्तिसे ही बहिरंग और अंतरंग क्रियाऑकी निवृत्तिरूप चारित्रका लक्षण कर दिया गया है, उस ही के समान अन्वर्थसंज्ञावाले ज्ञान शब्दकी सामर्थ्यसे ही आदि सूत्रमें कहे गये सम्यग्ज्ञानका भी लक्षण कर दिया गया है । इस ही कारणसे ज्ञान, चारित्र, जीव, अजीव आदिका लक्षण सूत्रकारने पृथक् रूपसे नहीं कहा है । जैसे कि पावक शबके उच्चारण करनेसे ही लोकमें पवित्र करानेवाली अग्निका सुलभतासे ज्ञान हो जाता है । क्योंकि उस शद्बका धातु प्रकृति प्रत्ययसे जो अर्थ निकलता है । वही पावकका पवित्र कराना अर्थ है और वही उसका लक्षण है । उसके समान ज्ञान और चारित्र शब्दकी निरुक्तिके कथनसे ही इनका लक्षण ध्वनित हो जाता है । ज्ञान और चारित्र इन दोनोंका जैसा नाम है, वैसा ही गुण