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तत्वार्थचिन्तामणिः
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शद्वका वाच्य विषय केवल अन्यापोह ही नहीं स्वीकार करना चाहिये । जैसे कि बौद्धोंने अन्यमतियों करके मानी गयी केवल जातिको या अकेली व्यक्तिको अथवा अकेली आकृतिको ही शब्दका वाच्य नहीं स्वीकार किया है। तथा निरपेक्ष होकर वे दोनों या तीनों भी शद्बकी वाच्य नहीं हैं।
..सर्वथा निर्विषयः शदोस्त्वित्यसंगतं, वृत्त्यापि तस्य निर्विषयत्वे साधनादिवचनव्यवहारविरोधात् ।
यदि कोई बौद्ध यों कहें कि शब्दका विषय कुछ भी न माना जावे । अन्यापोह, विवक्षा, जाति, आदि कोई भी कल्पित या वस्तुभूत पदार्थ शद्बके विषय नहीं हैं। अतः सभी प्रकारोंसे शब्द निर्विषय ही होओ ! सो यह कहना भी असंगत है, क्योंकि व्यवहार या संवृत्तिसे भी उस शद्बको निर्विषय माना जावेगा, तब तो पक्षसत्त्व, सपक्षसत्त्व, विपक्षव्यावृत्ति, इन तीन अंगवाले हेतुका बोलना अथवा अपने पक्षको साधनेवाले और परपक्षकों दूषण देनेवाले वचनोंके व्यवहार करनेका विरोध हो जावेगा । बौद्धोंके ग्रन्थ भी निरर्थक हो जावेंगे । शब्द अपने वाच्य विषयोंसे रहित हैं यह वाक्य यदि निरर्थक है तो संपूर्ण शब्दोंके वास्तविक वाच्य सिद्ध हो जायेंगे । अन्यथा शद्बोंकी निर्विषयताको साधनेके लिये तुम्हारे पास कोई उपाय नहीं है ।
किं पुनरेवं शद्धस्य विषय इत्याह:
तो फिर आप जैन ही इस प्रकार बतलाइये कि शद्बका वाच्य विषय क्या है ? ऐसी जिज्ञासा होनेपर श्रीविद्यानन्द महान् आचार्य उत्तर कहते हैं ।
जातिव्यक्त्यात्मकं वस्तु ततोऽस्तु ज्ञानगोचरः।
प्रसिद्धं बहिरन्तश्च शाहव्यवहृतीक्षणात् ॥ ५० ॥
तिस कारण घट, पट, पुस्तक आदि बहिरंग अर्थ तथा आत्मा, ज्ञान, मन, आदि अंतरंग अर्थ ये सब जाति और व्यक्ति स्वरूप वस्तुयें ज्ञानके विषय हो रही हैं, ऐसा ही लोकमें प्रसिद्ध है। इस कारण शद्वजन्य ज्ञानके विषय भी जाति, व्यक्ति स्वरूप वस्तु मानना चाहिये । उस वस्तुमें ही शद्वजन्य व्यवहार होता हुआ देखा जाता है । भावार्थ--सामान्य और विशेष अंशोंसे तदात्मक हो रहा पदार्थ ही शाद्वबोधका विषय है । जो कि प्रत्येक ज्ञानका विषय होता दीख रहा है।।
यद्यत्र व्यवहृतिमुपजनयति तत्तद्विषयं यथा प्रत्यक्षादिजातिव्यक्त्यात्मके वस्तुनि व्यवहृतिमुपजनयत्तद्विषयं तथा च शब्दः । इत्यत्र नासिद्धं साधनं बहिरन्तश्च व्यवहतेः सामान्यविशेषात्मनि वस्तुनि समीक्षणात् । तथा च यत्रैव शद्वात् प्रतिपत्तिस्तत्रैव प्रवृत्तिः तस्यैव प्राप्तिः प्रत्यक्षादेरिवेति सर्व सुस्थम् । ___जो ज्ञान जिस विषयमें व्यवहारको उत्पन्न करा देता है वह उसको विषय करनेवाला. माना जाता है, जैसे कि प्रत्यक्ष, अनुमान आदि प्रमाण जाति, व्यक्ति स्वरूप वस्तुमें व्यवहारको
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