________________
तत्त्वार्थ लोकवार्तिके
इसी प्रकार द्रव्यसे संयुक्त हो रहे दूसरे द्रव्यमें भी लोहित शब्द लोहित ज्ञानको उत्पन्न करा देवेगा । क्योंकि अन्य द्रव्यमें वह लोहितद्रव्य संयुक्त है । और उस लोहित द्रव्यमें लोहित गुण समवाय सम्बन्धसे वर्त रहा है । तथा उस लोहित गुणमें लोहित आकृतिका समवाय हो रहा है । इस कारण स्वयं युक्तसमवेतसमवाय सम्बन्धसे संयुक्त हो रहे दूसरे द्रव्यमें भी आकृति पहुंच जाती है । अतः लोहितश साक्षात् रूपसे आकृतिको कहता हुआ संयुक्त अन्य द्रव्यमें भी परम्परासे रक्तज्ञानको उत्पन्न करा देवेगा ।
२३४
एवं तु वस्त्रद्ववृते शुक्ले वस्त्रे संयुक्तसमवेतसमवायादिति यथा प्रतीतं लोके तथा गौरिति शद्रादपि स्वतो गोत्वरूपामाकृतिं कथयति तत्र प्रतिलब्धस्वरूपस्तदधिष्ठान एव गोपिण्डे गोप्रत्ययं करोत्यविभागेन तस्य तदावेशात् ।
1
अभी आकृतिवादी ही कहें जा रहे हैं कि इसी प्रकार तो दोनों ओर दो लाल वस्त्रोंसे वेष्टित हो रहे शुक्ल वस्त्र भी संयुक्तसमवेतसमवाय सम्बन्धसे लोहित ज्ञान उत्पन्न हो जाता है । देखिये, लोहित आकृति समवाय सम्बन्धसे लालगुणमें रहती है, रक्त गुण समवायसे रक्तद्रव्यमें रहता है, और रक्त वस्त्र तो संयोग सम्बन्धसे शुक्लवस्त्र में वर्तरहा है । जिस प्रकार साक्षात् और परम्परासे होते हुए उक्त ज्ञान लोकमें प्रतीति अनुसार या विश्वासपूर्वक जाने जा रहे हैं, उसी प्रकार गौ इस
से भी अपने आप गोत्वरूप आकृतिका कथन हो जाता है और उस गोत्वरूप आकृति में अपना स्वरूप लाभ करता हुआ गोशद्ब उस आकृतिपर ही आक्रमण कर उस व्यक्तिरूप गोपिण्डमें गौके ज्ञानको कर देता है, क्योंकि आकृति और व्यक्तिके विभागकी नहीं अपेक्षा करके उसका वहां प्रतिफलन हो रहा है। अतः सिद्ध होता है कि गुणको कहनेवाला लोहित शद्व तथा जातिको कहनेवाला गोश ये सभी शव आकृतिको कह रहे हैं ।
एवं पचतिशद्बोधिश्रयणादिक्रियागतैः ।
सामान्यैः सममेकार्थसमवेतं प्रबोधयेत् ॥ ३७ ॥ व्यापकं पचिसामान्यमधिश्रित्यादिकर्मणाम् ।
यथा भ्रमण सामान्यं भ्रमतीति ध्वनिर्जने ॥ ३८ ॥
इसी प्रकार क्रियावाचक पचति शद्ब भी विक्लेदन ( चूलिके ऊपर चावलोंका उष्ण पानी में उछलना, कूदना, ) आदि क्रियाओं में रहनेवाले सामान्योंके साथ एकार्थसमवायसम्बन्धसे रहते हुए पचनसामान्यरूप आकृतिको समझा देता है । लोकमें घूम रहा है यह शद्ब जैसे अनेक लगानारूप भ्रमणोंमें रहनेवाले भ्रमणसामान्यका प्रबोध करा देता है, तैसे ही पचनक्रिया की
•