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तत्वार्थ लोकवार्तिके
शद्बो द्रव्यवचनो दृष्टः वस्त्वेकं तेज इति जलं नामैकः स्वभावः शरीरं तत्त्वमिति च दर्शनानतिक्रमात् । यथा च द्रव्यमात्मेत्यादयः शद्बपर्यायाः द्रव्यस्य वाचकास्तथान्येपि सर्वे रूपादिशब्दाः प्रत्यस्तमयादिशब्दाच कथञ्चित्सदापन्नाः सर्वे शब्दाः द्रव्यस्याद्वयस्य वाचकाः शब्दत्वाद्द्रव्यमात्मेत्यादिशब्दवत् तदुक्तं - " आत्मा वस्तुस्वभावश्च शरीरं तत्त्वमित्यपि । द्रव्यमित्यस्य पर्यायास्तच्च नित्यमिति स्मृतम् " । इति ।
यहां कोई वादी लम्बा चौडा बखान कर रहे हैं कि शके विषय अनेक नित्यद्रव्य नहीं हैं, किन्तु एक प्रधानद्रव्य माना गया ब्रह्म ही शद्वका वाच्य है । उस एक ही द्रव्यका, आत्मा, वस्तु, स्वभाव, शरीर, तत्त्व, पदार्थ, भाव, आदि पर्यायवाची शवों करके निरूपण किया जाता है, जैसे कि यह एक ही आत्मा जल इस शद्वसे कहा जाता है ऐसे ही वह जलस्वरूप आत्माका वाचक यह शव द्रव्यशद्ब जाना जा रहा है । एक तेजोद्रव्य वस्तु है, यह भी उसी मुख्य द्रव्यको कहता है । इस प्रकार जल नामका एक स्वभाव या शरीर अथवा तत्त्व है और भी ऐसे ज्ञान होनेका अतिक्रमण नहीं है । कोई दार्शनिक पदार्थोंकी द्रव्य शद्वसे संख्या करते हैं, अन्य तत्त्वशद्वसे करते हैं, तीसरे भाव आदि शद्वोंसे प्ररूपण करते हैं, जैसे ही द्रव्य, आत्मा, वस्तु आदिक पर्यायवाची शब्द द्रव्यके ही वाचक हैं तिसी प्रकार अन्य भी संपूर्ण रूप, रस आदिक शब्द अथवा उदय होना, अस्त होना, चलना फिरना आदि सम्पूर्ण शद्व भी किसी अपेक्षासे सत् के साथ तादात्म्य रखते हुए द्रव्यके ही वाचक हैं । अतः अनुमान किया जाता है कि सभी शब्द (पक्ष) अद्वैतद्रव्यके वाचक. हैं ( साध्य ) शद्वपना होनेसे ( हेतु) आत्मा, ब्रह्म, आदि शद्वोंके समान ( दृष्टान्त ) । उसी बातको हमारे ग्रन्थोंमें इस प्रकार कहा है कि " आत्मा, वस्तु, स्वभाव, शरीर और तत्त्व, पदार्थ, भाव ये भी सब द्रव्य इस शके ही पर्याय हैं और वह द्रव्य नित्य माना गया है । वेद वाक्योंके द्वारा सम्प्रदाय नहीं टूटते हुये, ऋषियोंको ऐसा ही स्मरण होता हुआ चला आ रहा है 1
ननु चानित्यशब्देनोदयास्तमय शब्दाभ्यामद्रव्यशब्देन व्यभिचारस्तद्विपरीतार्थाभिधायकत्वादिति न मन्तव्यं, द्रव्योपाधिभूतरूपादिविषयत्वादनित्यादिशब्दानां रूपादयो त्पद्यन्ते वियन्ति चेत्यनित्याः द्रव्यत्वाभावाच्चाद्रव्यत्वमिति कथ्यन्ते । न चोपाधिविषयत्वादमीषां शब्दानामद्रव्यविषयत्वं येन तैः साधनस्य व्यभिचार एव सत्यस्यैव वस्तुनस्तैरसत्यैराकारैरवधार्यमाणत्वादसत्योपाधिभिः शब्दैरपि सत्याभिधानौपपत्तेः । तदप्यभिधायि । " सत्यं वस्तु तदाकारैरसत्यैरवधार्यते । असत्योपाधिभिः शब्दैः सत्यमेवाभिधीयते । "
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अभी लक वे ही वादी कह रहे हैं यहां कोई शंका करे कि तुम्हारे शद्वत्व हेतुका अनित्य श करके अथवा उत्पत्ति शद करके या अस्तमय ( विनाश ) शद करके और