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तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
गुणमें अथवा क्रियामें नामनिक्षेपरूप संज्ञा कर्म किया जाता है । वह तिसी प्रकार गुणशद्ध और क्रियाशर इष्ट किये गये हैं । गुणशद्वमें अपनी प्रवृत्तिके कारण गुणके अभिप्रायकी अपेक्षा है । अन्य बाहिरके गुण और कर्मोके निमित्तकारणपना नहीं है, जातिकी भी अपेक्षा नहीं है। ऐसे ही क्रियावाचक शद्वोंमें भी वक्ताके अभिप्रायरूप क्रियाकी आकांक्षा है । अन्य वास्तविक क्रिया, गुण
और जातिकी अपेक्षा नहीं है । गुण, क्रिया, जाति, संयोग, समवाय, आदिके अखण्ड पिण्डरूप द्रव्यमें गुणकी प्रधानतासे प्रवृत्त हो रहा शब्द गुणशद कहा जाता है । वह गुणके अभिप्रायको निमित्त मानकर वक्ता द्वारा व्यवहारमें आरहा है। जैसे कि शुक्लरंगकी अपेक्षासे शुक्ल शब्द है। श्वेतरंगसे मिला हुआ लालरंग पाटल कहा जाता है। मीठे रसकी अपेक्षासे मधुर रस है । सुरभि, शीत, कठोर, ज्ञान, सुख, चारित्र इत्यादि शद्बोंके समान गुण शब्द समीचीन व्यवहारमें प्रतीत हो रहे हैं । तथा क्रियाकी प्रधानतासे उस अखण्ड पिण्डरूप द्रव्यमें प्रवृत्त हो रहे शब्द क्रियांशब्द कहे जाते हैं । उनमें वक्ताका क्रियाकी ओर लक्ष्य देनेवाला अभिप्राय कारण है। इन शद्बोंमें क्रिया निमित्त जाना जारहा है, जैसे कि गमन करता है, भक्षण करता है, ऐसा चरतिक्रिया स्वरूप शब्द है । तैर रहा है, या गमन कर रहा है, इस अभिप्रायको कहनेवाला प्लवते यह शब्द नामनिक्षेप है । ऐसे ही और कोई भी पाचक, पाठक, लावक इत्यादि शब्द भी परिस्पन्दरूप पकाना, पढाना, छेदना, रूप क्रियाके अवलम्बसे क्रियाशब्द बोले जाते हैं। इस प्रकार इन नाम शद्बोंसे व्यवहारमें निक्षेप कर पदार्थीका अधिक निश्चय किया जा रहा है ।
द्रव्यान्तरमुखे तु स्यात्प्रवृत्तो द्रव्यहेतुकः। शद्वस्तद्विविधस्तज्ज्ञनिराकुलमुदाहृतः ॥ ८॥ . संयोगिद्रव्यशब्दः स्यात् कुण्डलीत्यादिशद्ववत् ।। समवायिद्रव्यशद्बो विषाणीत्यादिरास्थितः ॥९॥ कुण्डलीत्यादयः शदा यदि संयोगहेतवः। विषाणीत्यादयः किं न समवायनिबन्धनाः ॥१०॥
दूसरे द्रव्योंकी प्रधानता होनेपर व्यवहारमें प्रवृत्त हुआ शब्द तो द्रव्य शब्द है। इसके प्रचलित होनेमें कारण युतसिद्धि और अयुतसिद्धिसे सहित होरहा द्रव्य है। उस शब्दकी शक्तिको जानने वाले विद्वानोंने आकुलता रहित होकर उस द्रव्य शद्वको दो प्रकारका निरूपण किया है । कुण्डलयुक्त देवदत्त है । दण्डसहित जिनदत्त है, इत्यादि प्रयोगोंमें कुण्डली, दण्डी आदि शब्द तो संयोगी द्रव्य शब्द हैं, देवदत्तो कुण्डलका संयोग सम्बन्ध है । एक द्रव्यका दूसरे द्रव्यसे संयोग सम्बन्ध ही होता है । अतः संयोगवाले द्रव्यकी मुख्यतासे संयोगी द्रव्य शब्द प्रसिद्ध हो रहा है । द्रव्य शब्दका