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________________ ७६ तस्वार्थचिन्तामणिः marANarrrrrrry है। जैसे कि चतुर वैद्यके उपदेशको रोगी सत्यार्थरूपसे समझ लेता है या छलरहित जौहरीके उपदेशसे अनाडी पुरुष भी रनको जान लेता है। अपौरुपेशागमा निश्चय हृदस्तु, मन्नादेस्तव्याख्यातुनदर्थपरिज्ञानस्य तद्विपयरागद्वेषाभावस्य च प्रसिद्धत्वादिति चेत् न । यहां मीमांसक कहते हैं कि यों तो हमारे किसी पुरुषके द्वारा नहीं बनाये हुए अनादि कालीन वेदरूप आगमके अर्थका निश्चय भी उसी प्रकार विद्वान् व्याख्याताओंके द्वारा हो जावेगा। क्योंकि उस वेदके अर्थका व्याख्यान करनेवाले मनु, याज्ञवरुक, व्यास आदि ऋषियोंको उस वेबके अर्थका पूर्ण ज्ञान था और उनको वेदके विषयमें राग द्वेषका अमाव भी प्रसिद्ध है । ग्रंथकार कहते हैं कि आपका यह कहना तो ठीक नहीं है । प्रथमतः कस्यचिदतीन्द्रियवेदार्थपरिच्छेदिनोऽनिष्टेरन्धपरम्परातोऽर्थनिर्णयानुपपत्तेः। कारण कि यदि आपने आद्य अवस्थाम इंद्रियोंसे अतिक्रांत वेदके अर्थको जाननेवाला सूक्ष्म आदि पदार्थाका प्रत्यक्षदर्शी कोई सर्वज्ञ इष्ट किया होता तब तो उस सर्वशको मूल कारण मानकर मनु आदिको भी वेदके अर्थका ज्ञान परम्परासे हो सकता था। किंतु आप मीमांसक आदि समयमें सर्वज्ञ मानते नहीं हैं; अतः ऐसी अंधपरम्परासे अर्थका निर्णय हो जाना बन नहीं सकेगा। एक अधेने दूसरे अंधेका हाथ पकडा दूसरेने तीसरेका हाथ पकडा ऐसी दशाम उन सब ही अंधोंकी पंक्ति एक सूझतेके विना क्या अभीष्ट स्थान पर पहुंच सकती है। किंतु नहीं। और यदि मूलरूपसे एक सर्वज्ञ आदिमें सबको मार्ग दिखलानेवाला मान लिया जाय तो अनेक विद्वान् धारामवाहसे आगमके अर्थको आजतक जान सकते हैं। ननु ध व्याकरणाद्यम्यासाल्लौकिकपदार्थनिश्चये तदविशिष्टवैदिकपदार्थनिश्चयस्य खतः सिद्धेः पदार्थप्रतिपत्तौ च तद्वाक्यार्थप्रतिपत्तिसम्भवादश्रुतकाव्यादिवन वेदार्थनिश्चयेऽतीन्द्रियार्थदर्शी कश्चिदपेक्ष्यते, नाप्यन्धपरम्परा यतस्तदर्थनिर्णयानुपपत्तिरिति चेत् न । यहां मीमांसकका कहना है कि व्याकरण, कोष, व्यवहार आदिसे शब्दोंकी वाच्यार्थ शक्तिका ग्रहण होता है। जो विद्वान् पुरुष व्याकरण, न्याय आदिके अभ्याससे लोकमें बोले जायं ऐसे गौ, घट, आत्मा, आदि पदोंके अर्थका निश्चय कर लेते हैं। ऐसा होनेपर उन्ही आज कल परसरमें बोले हुए पदोंके समान ही वेदों में भी " अमिमीडे पुरोहितम् यजेत " आदि पद पाये जाते
SR No.090495
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1949
Total Pages642
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size19 MB
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