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________________ तत्त्वार्थचिन्तामणिः यदि बेदका व्याख्यान करनेवाला असर्वज्ञ और रागी है ऐसा पक्ष ग्रहण करोगे तो उस वेदको मूल मानकर बनाये गये मीमांसकोंके दर्शनसूत्रोंको उचित प्रमाणता नहीं आसकती है, कारण कि दोषी, रागी, अज्ञानी के वेदव्याख्यानसे श्रोताओंको धोखा होजाता है । जिसका व्याख्याता असर्वज्ञ है, उसके बाद या नि गरे गेङ्गालो भत्ति मानकर बनाया गया सूत्र भी विपरीतप्रवृत्ति करानेवाला होगा। दोषवव्याख्याकस्यापि प्रमाणत्वे किमर्थमदुष्टकारणजन्यत्वं प्रमाणस्य विशेषणम् । यथैव हि खारपटिकशास्त्रं दुष्टकारणजन्यं तथाम्नायव्याख्यानमपीति तद्विसंवादकत्व सिद्धेर्न तन्मूलं वचः प्रमाणभूतं सत्यम् । ___यदि दोषकाले अल्पज्ञ पुरुषोंसे व्याख्यान किये गये वेदको भी प्रमाण मान लोगे तो आपने " तत्रापूर्वार्थविज्ञानं निश्चितं वाधवर्जितं । अदुष्टकारणारब्धं प्रमाणं लोकसम्मतम् ।” यहां प्रमाजका निर्दोष कारणों से पैदा होना रूप विशेषण किसलिये दिया है ! बताओ, जैसे कि खरपटमतके शामें लिखा हुआ है कि स्वर्गका प्रलोभन देकर जीवितही धनवान्को मार डालना चाहिये, एतदर्थ काशीकरवत, गङ्गाप्रवाह, सतीदाह आदि कुत्सित क्रियाएं उनके मतमें प्रकृष्ट मानी गयी हैं। किंतु हम और आप मीमांसकलोग उक्त खरपटके शासको रागी, द्वेषी, अज्ञानी वक्ता रूप दुष्ट कारणसे जन्य मानते हैं अतः अप्रमाण है, वैसेही आपके वेदका द्वेषी, अज्ञानीसे किया गया व्याख्यान भी सफल प्रवृत्तिका कारण होकर विपरीत मार्गभ प्रवृत्त करादेने वाला सिद्ध हुआ अतः ऐसे वेदको मूल मानकर बनाया गया कोई भी वचन प्रमाण होकर सत्य नहीं हो सकता है। अब अगली वार्तिकका अवतरण करते हैं । कोई शक्का करता है कि सर्वज्ञवीतरागे च वक्तरि सिद्धे श्रेयोमार्गस्याभिधायकं वचनं प्रवृचं न तु कस्यचिस्पतिपित्सायां सत्याम् । चेतनारहितस्यात्मनः प्रधानस्य वा बुभुत्साया तत्प्रवृत्तमिति कश्चित्तं प्रत्याहः ___ अबतक यह बात तो सिद्ध हुयी कि सर्वज्ञ वीतराग वक्ताके सिद्ध होने पर ही मोक्षमार्गका कथन करनेवाला सूत्र प्रचलित हुआ है, अतः यह सूत्र सर्वज्ञप्रतिपादित होनेसे सादि है किंतु जैनोंने पूर्वमें कहा था कि प्रधान शिष्योंकी जाननेकी तीन अभिलाषा होनेपर ही सर्वज्ञने उक्त सूत्र कहा है, ठीक नहीं प्रतीत होता है। अतः बौद्ध कहते हैं कि किसीकी भी समझनेकी इच्छा न होते हुए अकस्मात् यह सूत्र बोल दिया गया है। और नैयायिक कहते हैं कि इच्छा होनेपर तो सूत्र कहा गया है किंतु भिन्न चेतनागुणको समवाय सम्बन्धसे रखनेवाले वस्तुतः चेतनारहित आत्माकी जाननेकी इच्छा होनेपर सूत्र बोल दिया गया है। तीसरे कपिलमतानुयायी कहते हैं कि सत्वगुण,
SR No.090495
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1949
Total Pages642
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size19 MB
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