SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 642
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ খিলালি: मुक्तिजनकतावच्छेदकत्वधर्मोपलक्ष्यवच्छिन्नात् / श्रीनिष्ठाषेयत्वप्ररूपिसाधारतां ने (ना, इ) यात् // 1 // द्रव्य पुरुष यो रनायसे मोक्षलक्ष्मीके अधिपतिपनेको मास हो जाये। अर्थात् मोक्षके कारणकी अन्य कारणोंसे व्यावृति करानेवाले रत्नत्रयत्व धर्मसे उपलक्षित रत्नत्रय प्रतिनियत कारण है। इस रलायके परिपूर्ण ओत प्रोत प्रविष्ट होआनेसे यह मनुष्य (का) मुक्ति लक्ष्मी में भवश्य ठहर रही आपेयपनके नियत आधारपनेको प्राप्त करलेवें / अर्थात्---कारण और कार्य अन्यूनानतिरिक्तपनेसे नियत होरहे हैं। रत्नत्रय नामक कारण और मोक्ष संजक कार्यमें मध्याहत एक्कार द्वारा अवधारण करलिया है। यह जीव रलायसे ही मोक्षमापको नियम पूर्वक पास करकेवे / मही इस नन्य न्यायाइपरका तात्पर्य है। PACL इति भद्रं भूयात् TA
SR No.090495
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1949
Total Pages642
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy