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________________ तत्त्वार्थचिन्तामणिः ५५९ अथवा दूसरा अनुमान यह है कि संसार के कारण कहे गये मिथ्याभिनिवेश, अर्थोको झूठा जानना तथा राग द्वेष, अमस आदि इन तीन शक्तिस्वरूप एक विपर्ययकी ठीक निवृति होना ( पक्ष ) अपने विधास्वरूप सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र, इन तीन शक्तिरूप एक रत्नत्रयात्मक आत्मद्रव्यके बिना नहीं बन सकता है ( साध्य ) संसार कारणोंकी सर्वथा निवृत्ति होनेसे ( हेतु ) इस प्रकार दो अनुमानोंसे सूत्रकारका तीनरूप मोक्षमार्गका उपदेश देना युक्त है । तत्र यदा संसारनिवृत्तिरेव मोक्षस्तदा कारणविरुद्धोपलब्धिरियं नास्ति कविसंसारः परमसम्यग्दर्शनज्ञान चारित्रसद्भावादिति । उस अनुमानके प्रकरणमें जब संसारकी निवृद्धिको ही मोक्ष माना जाये, तब तो यह निषेधका कारण विरुद्धोपलब्धिरूप हेतु है कि किसी विवक्षित एक जीव ( पक्ष ) संसार विद्यमान नहीं है ( साध्य ) क्योंकि उत्कृष्ट श्रेणीके सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र वहां विद्यमान हैं ( हेतु ) । इस अनुमानमै संसारका अभाव साध्य है । निषेध करने योग्य संसार के कारण मिथ्यादर्शन आदि तीन हैं। उनके विरुद्ध सम्यग्दर्शन आदि तीनकी उपलब्धि हो रही है, अतः यह कारण विरुद्धोपलब्धि हेतु है । प्रतिषेध्य के जो कारण उनके विरुद्धोंकी उपलब्धि होना है । यदा तु संसारनिवृचिकार्ये मोक्षस्तदा कारणकारणविरुद्धोपलब्धिः, कस्यचिदात्मनो नास्ति दुःखमशेषं मुख्य सम्यग्दर्शनादिसद्भावादिति निश्चीयते, त्यन्तिक सुखस्वभावत्वात्तस्य च संसारनिवृत्तिफलत्वात् । सकलदुःखाभावस्या किंतु जब मोक्षा संसारकी निवृचिका कार्य माना जाता है, तब तो यह हेतु कारणकारणं विरुद्धोपलब्धिरूप है कि किसी न किसी आत्मा के सम्पूर्ण दुःख नहीं हैं ( प्रतिज्ञा ) क्योंकि उस आत्मामें प्रधानरूपसे सम्यग्दर्शन आदि तीन गुण विद्यमान हैं ( हेतु ) यहां दुःखोंका अभाव साध्य है, दुःख प्रतिषेध्य है । दुःखका कारण संसार है और उसके कारण मिथ्यादर्शन आदि है । उनसे विरुद्ध सम्यग्दर्शन आदिकी उपलब्धि हो रही है । यों प्रकृत हेतु कारणकारण विरुद्धोपलब्धि रूप निश्चित किया जाता है । सम्पूर्ण दुःखोंके अभावको आत्यन्तिक सुख स्वभावना है और वह आत्माका अनंत कालक सुखस्वभाव हो जाना संसारकी निवृतिका फल है । नैयायिकों का माना गया दुःखध्वंसरूप मोक्ष हमको अभीष्ट नहीं है । दुःखाभाव अनंतसुखस्वरूप है । अभाव वस्तुस्त्ररूप है। वैशेषिकों का माना गया तुच्छ अमाव कुछ नहीं हैं यदा मोक्षः क्वचिद्विधीयते तदा कारणोपलब्धिरियं कचिन्मोक्षोऽवश्यंभावी सम्यदर्शनादियोगात् इति न कथमपि सूत्रमिदमयुक्त्यात्मकं, आगमात्मकत्वं तु निरूपितमेचं सत्यलं प्रपंचेन ।
SR No.090495
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1949
Total Pages642
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size19 MB
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