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________________ ४६ तत्त्वार्थचिन्तामणिः चिदुत्पत्तिप्रसिद्धेरेकां तनित्यताविरोधात् । शब्दस्योपलब्ध्युत्पत्तावप्युपलभ्यतानुत्पत्तौ स्यादप्रतिपत्तिरिति व्यर्थाभिव्यक्तिः । इस पूर्वोक्त कथनसे शब्दकी ज्ञप्तिकी उत्पत्तिको शब्दकी अभिव्यक्ति कहनेवाले का मंतव्य मी ण्डित हुआ सग बाहिये। क्योंकि चन्यके उपलब्धिके उत्पन्न होजाने पर यदि शब्द के उपलभ्यतास्वभावका उत्पाद मानोगे तो उससे अमिन शब्दका भी उत्पाद मानना पड़ेगा । यदि शब्द उपलभ्यताकी उत्पत्ति न मानोगे तो पूर्वके समान शब्दका कभी ज्ञान ही नहीं होना चाहिये यह प्रसङ्ग आयेगा । जो शब्दकी उपलब्धिके उत्पन्न होनेपर उस शब्दसे अभिन्न होरही उपलभ्यताको पैदा हुआ मानता है किंतु फिर शब्दको पैदा हुआ नहीं मानता है ऐसा कहने वाला मनुष्य आपे ( होश ) मैं नहीं है। जो स्वस्थ है वह ऐसी युक्तिरहित बातें नहीं कहता है । यदि आप वैयाकरण लोग उस उपलभ्यताको उस शब्दसे भिन्न मानोगे तो अपने गांठके स्वभावसे शब्द के सर्वदा अनुपलम्भ ही बने रहने की आपत्ति आवेगी, तथाच शब्द का ज्ञान भी न होगा | भिन्न पड़ी हुयी उपलभ्यताका शब्दके साथ धर्मधर्मिभाव संबंध हो जाने का भी योग नहीं है, जिससे कि उस उपलभ्यता के संबंधसे भी शब्द के उपलभ्यपने की किसी भी प्रकार सम्भावना नहीं हो सकती है । भेद और अभेद दोनों पक्ष मानने पर भी उपलभ्यताकी उत्पत्ति होने पर किसी न किसी प्रकार शब्दकी उत्पत्ति होना अनिवार्य सिद्ध है, इससे आपका एकांतरूपसे शब्दको नित्य मानना विरुद्ध हुआ । शब्दकी उपलब्धिकी उत्पत्ति होने पर भी शब्द में उपलभ्यपनारूप स्वभावको पैदा हुआ न मानोगे तो त्रिकालमै भी शब्दका ज्ञान न हो सकेगा। इस प्रकार उपलPost उत्पत्तिरूप अभिव्यक्ति मानना भी नितांत व्यर्थ है । श्रमसंस्कारोऽभिव्यक्तिरित्यन्ये । तेषामपि श्रोत्रस्थावारकापनयनं संस्कारः शब्दग्रहणयोग्यतोत्पतिर्वा तदा तद्भावे तस्योपलभ्यतोत्पत्यनुत्पत्योः स एव दोषः । शब्द नित्य और सर्वत्र व्यापक है, जिस जीवकी कर्णेन्द्रियमें संस्कार हो गया है, उम्र व्यक्ति को सुनायी पडता है । इसी कारण प्रत्येक व्यक्तिको सर्व देश सर्वेदा सुनायी नहीं पड़ता है । अतः सुननेवाले के कानोंका संस्कार हो जाना शब्दकी अभिव्यक्ति है । इस प्रकार दूसरे संप्रदाय के मीमांसक मानते हैं । ग्रन्थकार कहते हैं कि उनके यहां भी कर्णको सुनायी देनेमें आवरण करने वाले आधारकोंका दूर करना ही कणका संस्कार है ? या शब्दके ग्रहण करनेकी योग्यताका पैदा हो जाना श्रोत्रका संस्कार है ? बताओ, इन हम दोनों भी पक्षोंमें जब कर्णेन्द्रियका संस्कार हो जाता ह, उस समय शब्द में उस उपलभ्यताकी उत्पत्ति माननी पडेगी यदि उपलभ्यताकी उत्पत्ति न मानोगे तो वही पूर्व में दिया हुआ शब्दका कमी सुनायी न पडनारूप दोष या जावेगा । और जब
SR No.090495
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1949
Total Pages642
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size19 MB
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