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तत्त्वाचिन्तामणिः
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चाहोगे, तब तो आपका यह कहना पाप करने की लत पडजानेवाले आग्रही पुरुषके कहनेके समान है कि वह ज्ञानका स्वरूप न तो स्वयं अपनेसे जाना जाता है और न दूसरे ज्ञापकोंसे भी जाना जाता है। किंतु वह है अवश्य । मला, जिसके जाननेका कोई उपाय नहीं है, उसकी सत्ता कैसे मानी जासकती है ! यानी नहीं ।
न स्वतः संवेधते सम्वेदनं नापि परतः किं तु संवेद्यत एवेति तस्य सत्ववचने, न क्रमामित्योऽर्थः कार्याणि करोति नाप्यक्रमात् । किं तर्हि १ करोत्येवेति ब्रुवाणः कथं प्रतिक्षिप्यते १ नैकदेशेन स्वावयवेष्ववयवी वर्तते नापि सर्वात्मना किं तु वर्तते एवेति च, नैकदेशेन परमाणुः परमाण्वन्तरैः संयुज्यते नापि सर्वात्मना किं तु संयुज्यत एवेत्यपि वन प्रतिक्षेपार्होऽनेनापादितः ।
शुद्धज्ञानरूप संवेदनका स्वयं अपनेसे संवेदन नहीं होता है और न दूसरोंसे भी संवेदन होता है, किंतु उसका सम्वेदन हो ही जाता है। इस प्रकार यदि घोंसके साथ उस सम्वेदनकी सताका कथन करोगे तो अनित्यवादी आप बौद्धोंके प्रति नित्यवादी सांख्य भी यह कह सकता है कि कापिठोंके यहां माना गया अनित्य वर्ग भी न करता है और न अक
मसे, युगपत् अनेक कायको करता है तब तो क्या है ? इसका उत्तर यों है कि वह नित्यपदार्थ कायको करता ही है। भला, इस प्रकार कहता हुआ सांख्यमतानुयायी आपके द्वारा क्यों खण्डित किया जाता है ? भावार्थ – आप बौद्धोंने नित्यवादका खण्डन करते हुए यह कहा है कि सत्यकी यात अर्थक्रिया के साथ है और मर्थक्रिया कम और यौगपथके साथ व्याप्ति रखती है। सांख्योंके स्वीकृत सर्वथा नित्य पदार्थ में क्रम और यौगपद्य नहीं है। इस कारण उन क्रम यौगपद्यसे व्याप्य हो रहे अर्थक्रिया और सत्व भी उसमें नहीं है। किंतु अब आप बिना हेतुके ही संवेदन होना मानते हैं तो मौके विना नित्य अर्थ मी अनेक कायाको करलेगा । तथा च नित्य अथकी सदा मी सिद्ध हो जावेगी । इसी प्रकार बौद्ध लोग अवयवी द्रव्य भी नहीं मानते हैं। बौद्धों के यहां क्षणिक परमाणुरूप पदार्थ माने हैं । अवयवीके खण्डनके लिये उन्होंने यह युक्ति दी है कि अपने अवयवों में अवयव यदि एक देश करके वर्तेगा, तब तो पहिले ही से अवयवी में दूसरे अभ्य अवयव (देश) मानने पढेंगे, तभी एक देश कहा जा सकेगा और उन पहिलेके अवयवों में भी एकदेश करके रहेगा वो फिर सीसरे अन्य अवयव मानने पडेंगे, ऐसे अनवस्था हो जावेगी । और यदि सर्वांगरूपसे अवयत्री एक एक अवयव रहेगा तो जितने अवयव हैं, उतने अवयवी पदार्थ हो जायेंगे । अर्थात् जितने सूत (तन्तु) हैं, उतनी संख्यावाले थान बन जायेंगे । तथा परमाणु एकदेश करके दूसरे परमाणुओंसे सम्बद्ध होगी, तब तो परमाणु भी पहिलेसे अनेक देशवाली सांग्र हो जायेगी, और यदि विवक्षित परमाणु पूर्ण रूपसे दूसरे परमाणुसे मिल जावेगी तो लम्बा चौडा पिण्ड परमाणुके बराबर