SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 456
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्त्वाचिन्तामणिः Gk वैसे ही चारित्र शब्दको कर्ममे "मित्र" प्रत्यब करने पर साधा गया समझ लेना चाहिये । "विवक्षातः कारकप्रवृतः " इस नियमके अनुसार पदार्थ में बक्ताकी इच्छासे अनेक कारकोंकी प्रवृत्ति हो जाती है । भावार्थ - घटको जानता है, घटका ज्ञान करता है और घटमें ज्ञान करता है। यहां ज्ञानक्रियाकी अपेक्षा से घटमें अनेक कारकोंकी प्रवृत्ति हो गयी है, गौसे दूध दुहता है, गौका दूध दुहता है, गौको दुहता है, इसी प्रकार आत्माका पर्याय रूप चारित्र गुण भी कर्ता, कर्म, करणपने साथ दिया जाता है। विवक्षा भी कोई झूठ मूंठ नहीं गढली गयी है। किंतु परमार्थ स्त्रीभिति पर विवक्षा खडी की गयी है । चारित्रमोहस्योपशमे क्षये क्षयोपशमे वात्मना चर्यैते तदिति चारित्रम् चर्यतेनेन 'चरणमात्रं वा चरतीति वा चारित्रमिति कर्मादिसाधनश्चारित्रशद्धः प्रत्येयः । चारित्रमोहनीय कर्मके उपशम, क्षय अथवा क्षयोपशमके होनेपर आत्मा के द्वारा जो चरण ( शुभप्रवर्तन अशुभनिवर्तन ) किया जाय वह चारित्र है । यह कर्म णित्र प्रत्यय करके चारित्र शब्द बनाया गया है अथवा आत्मा जिस करके चरण करे वह भी चारित्र है । यह करण साधन व्युत्पत्ति है। तीसरी निरुक्ति भावसाधन में इस प्रकार है कि कर्म, कर्ता आदिसे कुछ भी सम्बन्ध न रखते हुए केवल चर्या करना ही चारित्र है । अथवा चौथी निरुक्ति चर गतिमक्षणयोः गति और भक्षण अर्थको कहनेवाली स्वादि गणको नर् धातुसे कर्ताने णित्र प्रत्यय करके की गयी है अर्थात् जो स्वतन्त्ररूपसे आचरण करता है, वह आत्मा चारित्ररूप है। इस प्रकार कर्म, करण, भाव, और कर्ता में शब्दशास्त्रसे चारित्र शब्दका साधनकर दिया गया समझलेना चाहिये | भावार्थ - जैन धर्मके अनुसार प्रत्येक वस्तुमें अनेक स्वभाव और परिणाम माने गये हैं। अतः चार क्या, इससे भी अधिक धमकी योजना एक पदार्थमें बन जाती है । लेज ( रस्सी ) बैलको बांधती है । लेजसे बैल बांधा जाता है। लेज स्वयं लेजको बांध रही है। लेख स्वयं बंध रही है । एवं देवदत्त घोढेको भगाता है और घोडा देवदत्तको भगाता है; घोडा स्वयं भाग रहा है ! और उसपर लदा हुआ देवदत्त भी दौड़ा जा रहा है तथा देवदत्त स्वयं दौडता है और उसकी टांगो में फंसे हुए घोडेको देवदत्तके प्रयत्न से दौडना पडता है । वास्तवमे विचारा जावे तो घोडेकी आत्मामें देशसे देशान्तर होनेकी किया ही भाग रही है, किन्तु उस क्रिया परिणामी घोडे शरीर और जीवको मी मालगाडी में लदे हुए मालके समान भागना पडता है । इस प्रकार स्वतंत्रता और परतंत्रता से किये गये परिणामोंके अनेक दृष्टांत है। I I ननु च " भूवादिग्भ्यो णित्र " इत्यधिकृत्य " चरेर्वृत्ते " इति कर्मणि पित्रस्य विधानात् कर्त्रादिसाधनखे लक्षणाभाव इति चेत् न, बहुलापेक्षया तद्भावात् । asi पुनः शंका है कि व्याकरण शास्त्र के " भूवादिहम्म्यो णित्र " इस सूत्रका अधिकार लेकर अगले " चरेर्वृद्धे " इस सूत्र करके च धातुसे चारित्र अर्थ में कर्मकारकर्म णित्र प्रत्ययका
SR No.090495
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1949
Total Pages642
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy