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________________ १०६ वस्था चिन्तामणिः तीसरे पक्षमे कारणके द्वारा कृति करते हुए कार्यका होना लक्षण घट जाता है। उक्त तीन कालके विशेषणोंसे घिरा हुआ आकार मेद भी उसी एक सामग्री में पड़ा हुआ है । जिप्स सामग्रीके अधीन होकर अंकमाला उत्पन्न होती है। ऐसा कहनेपर तो हम कहेंगे कि क्या इस सूर्य आदिकके ग्रहण भेदने इंद्रजालका अभ्यास किया है। जिससे कि यह मूतकाल और वर्तमानकालकी होनेवाली सम्पूर्ण संख्या अक्षरोंकी लिपियोंको अपने आप बना देता है । इंद्रजालिया ( बाजीगर ) ही हस्त कौशलसे या दृष्टिबंधन करके आगे पीछे होनेवालों अनेक वस्तुओंको वर्तमान बनती हुयी दिखा देता है अथवा कार्यकारण भावका मंगकर गेहूं के बीजसे आन और बालसे सर्पकी उत्पत्ति कर दिखा देता है । भविष्य कारणसे वर्तमान कार्य करना सुझा देता है। किंतु यह सब धोका है । अन्यबाहित पूर्ववर्ती कारणके बिना कभी कार्य नहीं होसकता है। यह कार्यकारण मावका नियम अटल है। कथं वा क्रमाक्रममाव्यनन्तकार्याणि नित्यैफस्खमावो भावः स्वयं न कुर्यात्, ततो विशेषाभावात् । बुद्ध सिद्धांतके अनुसार परमार्थभूत पदार्थको शब्द नहीं छूते हैं । इस कारण बौद्ध लोग आगमको प्रमाण नहीं मानते हैं । इसीलिये वे सूर्य, चंद्र प्रश्णके आकार विशेषोंका निर्णय भी अनुमान प्रमाणसे करते हैं तथा भविष्यमें होनेवाले आकार भेद रूप कारणका पट्टीपर लिखी हुयी अक्षर पंक्तिको कार्य मानते हैं । क्योजी ! चिरकालका भूत पदार्थ और दूर भविष्यका पदार्थ भी वर्तमान कार्यका यदि जनक बन जावे तो नित्य कूटस्थ एक स्वभाववाला पदार्थ भी क्रम और युगपत्से होनेवाले अनंत कार्योंको अपने आप क्यों नहीं कर लेवेगा ! इस सिद्धांतसे तो कापिलोंके नित्यपनके मंतव्यमें कोई अंतर नहीं है तथा च आपके क्षणिक बारके स्थानपर नित्यवाद भी पतिष्ठित हो जावेगा, तब तो अब आप बौद्ध नित्यवादका उक्त कुयुक्ति देकर खण्डन नहीं कर सकेंगे। मवन् वा स तस्याः कारणम्, उपादानं सहकारि वा ? न तावदुपादानं खटिकादिकवायास्तदुपादानत्वात्, नापि सहकारिकारणमुपादानसमकालत्वाभावात् । . " अस्तुतोष " न्यायसे वह आकारभेद उस पट्टीको अंकमालाका कारण भी हो जावे, किंतु हम पूछते हैं कि उस अंकमालाका वह आकारभेद क्या उपादान कारण है या सहकारी कारण है ! बताओ । पहिला उपादान कारण तो आप मान नहीं सकते हैं। क्योंकि खडिया, शीशलेखनी, (सिल ) मषी, गेरू, आदिसे बनायी गयी अंकमालाका वे खडिया आदि उपादान कारण है। वे ही पट्टीपर संख्या अक्षर रूपसे परिणत होते हैं । ग्रहणका आकार भेद तो उपादान कारण नहीं है, खडिया आदिकी बनाई गई बत्तीसे पट्टोपर गणितके अंक लिखे जाते हैं। और अंकमालाका आकारभेद सहकारी कारण भी नहीं हो सकता है । क्योंकि उपादान कारणके कालमें रहकर कार्य
SR No.090495
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1949
Total Pages642
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size19 MB
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