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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
चाहिये। क्योंकि उक्त तीनों ही पदार्थ जीव-द्रव्य-स्वरूप आत्मा पदार्थ नहीं हैं और हमने आस्माके मोक्षमकी जिज्ञासा होना कहा है और उस परिणामी नित्य-आत्मद्रव्यको हम सिद्ध भी कर चुके हैं। जडस्य चैतन्यमात्र स्वरूपस्य चात्मनः सत्यपि न शंकनीयमुपयोगस्वभावस्येति प्रतिपादनात् तथास्य समर्थनात् ।
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नैयायिककी मानी हुयी ज्ञानसे भिन्न जडरूप आत्माके या सांख्यकी केवल चैतन्यरूप आत्मा कल्याणमार्गको जाननेकी वह इच्छा होती है, यह भी शंका नहीं करना चाहिये। क्योंकि हमने अनुमान में उपयोग स्वभाववाली आत्माके जिज्ञासा होना बतलाया है । उस प्रकार अन्नादिसे अनंत काल तक चैतन्यसे अन्वित इस आत्माका हम युक्तियोंसे समर्थन कर चुके हैं। आत्मा सामान्यविशेष धर्मस्वरूप है । आस्माका दर्शनोपयोग सामान्यरूपसे पदार्थों का संचेतन करता है और विशेषरूपसे ज्ञानोपयोग वेदन करता है। ये दोनों आत्मा के स्वात्मभूत परिणाम हैं।
निःश्रेयसेना संपित्स्यमानस्य तस्य सेति च न चिन्तनीयस्, श्रेयसा योक्ष्यमाणस्येति निगदितत्वात् तस्य तथा व्यवस्थापितत्वात् ।
तथा कल्याणमार्ग महीं सम्पन्न होनेवाने
आती है,
गुर्द
भी नहीं विचारना चाहिये। क्योंकि कल्याणमार्ग से युक्त होनेवाले ऐसा विशेषण हमने अनुमानमें कह रखा है । उस आत्माका उस प्रकार कल्याणसे युक्त होना भी हम निर्णीत कर चुके हैं।
कालदेशादिनियममन्तरेणैव सेत्यपि च न मनसि निधेयम्, कालादिलब्धौ सत्यामित्यभिघान तथा प्रतीतेश्च ।
विशिष्ट काल और नियतदेश तथा कार्यहानि आदि नियमोंके बिना ही आत्माके कल्याणमार्ग को जाननेकी वह इच्छा हो जाती है, यह भी मनमें नहीं विचार करना चाहिये। क्योंकि काळलब्धि, सुदेश, सुकुलत्य आदि की प्राप्ति हो जानेपर, ऐसा हमने कहा है और उस प्रकार प्रतीत मी हो रहा है। बिना देश, कालकी योग्यताके आम फलते नहीं, ज्वर मी दूर नहीं होता है । यहाँतक कि प्रत्येक कार्यमें देश, काल, सम्पत्तिकी आवश्यका देखी जा रही है ।
वृहत्पापापायमन्तरेणैव सा सम्प्रवर्तत इत्यपि माभिर्मस्त, बृहत्पापापायात्तत्संप्रवर्तनस्य प्रमाणसिद्धत्वात् ।
चडे पापोंके दूर हुए बिना ही वह जिज्ञासा भली भान्ति प्रवृत्त हो जाता है । बहू भी ऐंठ सहित नहीं मानना चाहिये। क्योंकि सीव्र अनुभाग और दीर्घ स्थितिवाले पापोंके नाश हो जानेसे ही शुभमार्ग के जाननेमें बढिया प्रवृत्ति करना प्रमाणोंसे सिद्ध हो रहा है। तीन दुष्कर्मका उदय रहता है, उस समय तो मैं कौन हूं? कहांसे आधा हूं : कहां जाऊंगा ? क्या मेरा स्वभाव
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