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तत्त्वार्थेचितामणिः
Maa विरोध आवेगा । आचार्य कहते हैं कि इस प्रकार शंका ठीक नहीं हैं, क्यों कि प्रमाणसंप्लव सब जगह नहीं होता है । घट, पटादिकोंको प्रत्यक्ष ज्ञान द्वारा दृढरूपसे जान कर पर्थ ही दूसरा प्रमाण उनके जानने के लिये नहीं उठाया जाता है, हाँ ? कहीं कहीं आगम और अनुमान दोनों प्रमाणों से भी प्रवृत्ति होना हम इष्ट करते हैं। शास्त्रों में सभी बातें आगम ज्ञान के आश्रित होकर ही नहीं लिखी जाती है। सूक्ष्म और स्थूल तत्वोंके निरूपण करने वाले सच्चे शास्त्र हेतुवाद और अहेतुवादसे तद्रुप होकर भरे हुये हैं। विशेषकर यह श्लोकवार्तिक शास्त्र यक्ष ज्ञान, गमज्ञान और ज्ञान से परिपूर्ण है.
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अपने अतीन्द्रिय और इन्द्रियमाय तसे परिपूर्ण सिद्धान्त विषयोंकी प्रतिवादियों के प्रति समझाने में सयुक्तियों से उन तत्वों का परिज्ञान कर लेना ही कारण है। हेतुवाद से तत्वों का निर्णय न करके कोरी श्रद्धा से लिखा हुआ शास्त्र तो सिद्धान्तका विरोधी हो जाता है। तभी तो वेदादिक इतर रचनायें केवल विश्वाससे विचारशीलो में प्रतिष्ठा नहीं पाते है ।
तथा चाम्यधायि
और इसी बात को पूर्व के आचार्यों ने भी तिस प्रकार कहा है कि
" जो हेदुवादपरकम्प हेदुओ अगमम्मि आगमओ, सो ससमयपण्णवओ सिद्धंतविरोहओ अण्णोति. "
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हेतु के परिवार माने गये पक्ष, दृष्टान्त, व्याप्ति और समर्थनयुक्त हेतुवादसे जो सिद्ध किया गया है, वह आगमोंमें श्रेष्ठ आगम है । और वही सिद्धान्त के अनेक गूढ रहस्योंका समझाने वाला है। इसके अतिरिक्त शास्त्रतो सिद्धान्तके पोषक नहीं, उलटे विरोधी हैं। ऐसे भयंकर शस्त्र के समान शास्त्रों से श्रोताओं को दूर रहना चाहिये । अन्धश्रद्धा के अनुसार आँख मीच कर चाहे जिस ऐरे गैरे शास्त्र में शाखपने की श्रद्धा रखने वाले वादियों के निरासार्थ शास्त्रमें हेतुवाद की प्रधानता मानी गयी है । एवञ्च तत्तार्थसूत्र और लोकवार्तिक आदि ही सच्चे शास्त्र हैं।
अथ “ श्री वर्धमानमाध्याय " इस आदिवाक्यकी पूर्वप्रतिज्ञा के अनुसार आगम और अनुमान प्रमाण की नींव पर स्थिति को सिद्ध करते हैं ।
तत्रागममूलमिदमादिवाक्यं परापरगुरुप्रवाहमाध्यायप्रवचनस्य प्रवर्त्तकं तत्त्वार्थश्लोकवार्त्तिकं प्रवक्ष्यामीति वचनस्यागमपूर्वकागमार्थत्वात् । प्रामाण्यं पुनरस्याभ्यस्तप्रवकुगुणान् प्रतिपाद्यान् प्रति स्वत एवाभ्यस्त कारणगुणान् प्रति प्रत्यक्षादिवत् । स्वयमनभ्यस्त - वत्कगुणांस्तु विनेयान् प्रति सुनिश्चितासंमवखापकत्वादनुमानात्स्वयं प्रतिपन्नाशांतरवच