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तत्वार्थ चिन्तामणिः
तो
कर्म कसा भिन्न मानोगे तो ज्ञानकी जाननारूप क्रिया वहां स्वात्मामें कैसे पायी गयी ? बताओ । जिससे कि स्वामा कियाके रहने विरोन को सकर्मक धातुओंकी चटाईको बना रहा है, यह क्रिया भी चटाई बनानेवालेकी स्वात्मामें कैसे न रहेगी ! जिससे कि विशेध न हो सके । भावार्थ-- सर्वथा भेदपक्षमें तो पद पद पर क्रियाका विरोध हो जावेगा । संसारका कोई भी कार्य न हो सकेगा । सब स्थानोंमें अपने से अपना विरोध हा जावेगा । एकांत भेदपक्ष इस कार्यका यह कर्ता है, इस क्रियाका यह कर्चा है ऐसा व्यवहार भी न हो सकेगा ।
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कर्तुः कर्मत्वं कथञ्चिद्भिनमित्येतस्मिंस्तु दर्शने ज्ञानस्यात्मनो वा स्वात्मनि क्रिया दूरोत्सारितैवेति न विरुद्धतामधिवसति ।
यदि जैनोंके सदृश कर्ता कर्मपना कथञ्चित् भित्र है और कथञ्चित् अभिन्न है इस प्रकारका सिद्धांत मानोगे तब तो ज्ञानका या आत्माका अपनी आत्मामें क्रिया करना दूर फैक दिया गया ही है। अर्थात् ज्ञान अपनेको जानता है, यहां ज्ञानमें ज्ञप्ति, ज्ञापक और ज्ञेय अंश न्यारे न्यारे हैं। संवेद्य, संवेदक और संवित्ति इन तीनों अंग्रोंके पिण्डको ज्ञान माना है । अतः जानना ज्ञप्ति अंश हो रहा है। माना गयापन ज्ञेय अंश हो रहा है और जाननेका कर्ता ज्ञापक अंश है । इसप्रकार कोई भी विरुद्धपनेको प्राप्त नहीं होता है |
ततो ज्ञानस्य स्वसंवेदकता प्रतीतेः स्वात्मनि क्रियाविरोधो वाधकः प्रत्यस्तमितषाप्रतीत्यास्पदं चार्थसंवेदकत्ववत्स्वसंवेदकत्वं ज्ञानस्य परीक्षकैरेष्टव्यमेव ।
इस कारण से अब तक सिद्ध हुआ कि ज्ञान का वेदन करता है ऐसी प्रतीति हो रही है । अतः अपनी आलामें अपनी क्रियाका होना विरुद्ध है इस प्रकारका भाषक दोष पहिली निर्वाध प्रतीति अनुसार स्वयं बाधित हो जाता है। जो बाधक स्वयं माध्य होनेका स्थान है वह प्रतीतिसिद्धविषयों में क्या बाधा देगा ! यदि नैयायिक परीक्षा करके पदार्थोंकी व्यवस्था मानेगे तो ज्ञान जैसे अर्थको जानता है उसी प्रकार अपनेको जानता है । यह भी नैयायिकोंको अच्छी तरह इष्ट कर लेना चाहिए । परीक्षकों को यह बात अभीष्ट करनी पडती है कि ज्ञानका स्वसंवेकपना चारों ओरसे नष्ट कर दिये गये हैं, बाधक जिनके ऐसी प्रतीतिओंका स्थान है। इससे अधिक क्या कहा जाने !
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प्रतीत्यननुसरणेऽनवस्थानस्य स्वमतविरोधस्य वा परिहर्तुमशक्तेः ।
यदि नैयायिक लोग प्रमाणसिद्ध प्रतीतियों के अनुसार नहीं चलेंगे, किन्तु अवसरके अनुसार पैंतरा बदलेंगे तो उन्हें ज्ञानोंको ज्ञानन्तरोंसे जानते जानते अनवस्था दोष अवश्य लगेगा