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सत्वार्थचिन्तामणिः
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घटको बनानेवाले मट्टी कुम्हार आदि कारण हैं । प्रागभाव अकारणवान है सत् नहीं अतः नित्यका लक्षण अकारणवान् होकर सत्पना माना है। किंतु जब सर्च ही पदार्थ द्रव्य और पयाय-स्वरूपसे नित्य अनित्य रूप है तो अहेतुकस्व विशेषण व्यर्थ पडता है। जैसे कि अकेले अहेतुकपना यानी " नहीं है बनानेवारण कारण जिसका " इस लक्षणसे ही जब नित्य पदार्थ लक्षित हो जावेगा अथवा अहेतुकत्वको हेतु मान लेनेसे ही नित्यपना सिद्ध हो जावेगा तो उसमें सत्त्वविशेषण व्यर्थ है । भावार्थ-दोनोमसे सत्त्व या अहेतुकपना एक ही नित्यपनेका लक्षण माना जावे व्यर्थ दूसरा पुंछपला क्यों लगाया जाता है ।
प्रागभावेन व्यभिचारः सत्त्वविशेषणेन व्यवच्छिधत इति न तव्यर्थमिति चेत् , न, सर्वस्य तुच्छस्य प्रागमावस्याप्रसिद्धत्वात् , भावान्तरस्य भावस्य नित्यात्मकत्वाद्विपक्षतानुपपचेस्तेन व्यभिचारासम्भवात् , ततो युक्तं सत्वस्याविशेषणस्य हेतुत्वमहेतुकत्ववदिति, ततो गवत्येव साध्यसिद्धिः।
यहां नैयायिक और चार्वाकोका कहना है कि नित्यके अकेले अहेतुकत्व लक्षण करनेसे प्रागभाव करके व्यभिचार हो जावेगा, देखो प्रागभाव विना किसी कारणसे उत्पन्न हुआ अनादि कालसे चला आरहा है किंतु वह प्रागभाव सांत है कार्यके उत्पन्न होजानेपर नष्ट हो जाता है। अतः वह त्रिकालदर्ती नित्य नहीं है और जब इमने नित्यके लक्षण या हेतु, सत्वरूप विशेषण दे दिया, तष अभावरूप मागभावमें अतिव्याप्ति नहीं हुयी। अतः सत्त्वविशेषण देना व्यर्थ नहीं है । आचार्य कहते हैं कि नैयायिकोका यह कहना वो ठीक नहीं है क्योंकि बौद्ध, जैन, मीमांसक आदि सबके मतमें धर्म धर्मी, कार्यकारण आदि स्वभावोंसे रहित होरहा ऐसा तुम्हारा माना हुआ उपारव्यारहित तुच्छ प्रागभाव प्रमाणों से सिद्ध नहीं हैं वह अश्वविषाणके समान असत् है । हां पूर्वपर्यायस्वरूप दूसरे मावोंके स्वभाववाला अन्यभावरूप प्रागगाव हम सबने इष्ट किया है। वह प्रागमाव नित्य अनित्यात्मक भी है। हेतु रह गया तो साथ ही साध्य भी ठहर गया अतः यह प्रागभाव तो सपक्ष है इसको विपक्षपना सिद्ध नहीं है । विपक्षमे हेतु रहता तो व्यभिचारकी सम्भावना थी, सपक्ष होरहे उस प्रागभावमे हेतुके रहनेसे न्यभिचार नहीं है प्रत्युल हेतु पुष्ट होगया इस कारणसे महेतुकलविशेषणसे रहित केवल सत्त्वको ही अनादि अनंत सिद्ध करने हेतु बनाना हमारा बहुत ठीक समुचित प्रयत्न है । घटादिक भी द्रव्यरूपसे नित्य हैं। जैसे कि सत्त्वविशेषणसे रहित केवल अहेतुकपना रूप हेतुसे नित्यपना सिद्ध होजाता है । नहीं है हेतु जिसका ऐसे बहुव्रीहि समासमै क. प्रत्यय करनेपर पर्युदासवृत्तिसे अहेतुकका अर्थ द्रव्य नित्य ही होता है। समवायी कारण या पूर्व पर्याय पिण्डस्वरूप प्रागभाव भी कथञ्चित् नित्य है । इस प्रकार उस रिक्त सत्त्वहे तुसे प्रकरण पड़े हुए अनादि अनंतरूप साध्यकी सिद्धि हो ही जाती है ।