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तत्वार्थचिन्तामाणः
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तक पर्यायोंको धारण करता हुआ अखण्ड एक द्रव्य पूर्व उत्तरवर्ती पर्यायोंके द्वारा उपादान उपादेयस्वरूप होरहा है । दूसरा सजातीय या द्रव्य उसकी पर्यायोंका उपादान कारण नहीं है।
तत्वमुपादानत्वं विकार्यत्वं च तद्भदो द्रव्यान्तरण्याचेन स्वभावेनान्वयित्वे सत्युपादानोपादेययोयुक्तो नान्यथातिप्रसंगादित्युपसंहर्तव्यम् ।
यहाँ उपादानव्यवस्थासंबंधी नियमक प्रकरणका वक्ष्यमाण इस तरह संक्षेपमें संकोच करना पाहिए कि उपादान कारण और उसके विकारको प्राप्त हुए उपादेय कार्य दोनों एकही सच हैं। उन उपादान और उपादेयका केवल कार्यकारणरूपसे मेद है। निराले मित्र तत्त्वोंकी अपेक्षामे मेद नहीं है क्योंकि वे दोनों ही दूसरे द्रव्यों के स्वभावोंसे पृथामत स्वकीय स्वमावोंकरके धाराप्रवाह रूपसे एक दूसरे शृङ्खलाबद्ध अन्वित हो रहे हैं। सभी उपादान उपादेयभाव उचित पडता है जो पर्याय अखण्ड त्रिकाल्गोचर द्रव्यमें अन्वित नहीं हैं उनमें उपादान उपादेवपना भी नहीं है। यदि ऐसा नियम न माना जावेगा तो अन्य प्रकार होनेपर अतिपसंग हो जावेगा । अर्थात् कोई भी चेतनद्रव्य जडका और आपके मतानुसार पृथ्वीतत्व जसका भी उपादान बन बैठेगा, हम तो अनंतानंद पर्यायोंको टांकीसे उकेरे गये न्यायसे द्रव्यमै शक्तिरूपसे विषमान मानते हैं। अतः न कोई पाल बरावर परता है और न रत्ती भर पड़ता है सब अपने अपने स्वभावों में रमे रहते हैं।
यदि द्रव्यप्रत्यासति न रखनेवाले किसी भी तत्त्वसे चाहे कोई भी उपादेय बन जायेगा सो मोहम्मद-मतानुयायियोंके खुदाके यथावश्यक विचारानुसार अनेक रूहों ( आत्माओं) की उत्पति कर देनेके समान असंख्य नवीन पदार्थ उत्पन्न हो जायेंगे। अश्वके मस्तकमे भी सींग निकल आवेंगे, चनासे गेहूंका अंकुर भी उपज जायगा जो कि किसीको इष्ट नहीं है ।। .
तथा च सूक्ष्मस्य भूतविशेषस्याचेतनद्रव्यव्यापत्तस्वभावेन चैतन्यमनुगच्छतस्तदुपा• दानत्वमिति वर्णादिरहितः स्वसंवेद्योऽनुमेयो वा स एवात्मा पंचमतस्वमनात्मज्ञस्य परलो. कप्रतिषेधासम्भवव्यवस्थापनपरतया प्रसिद्धयत्येवेति निगद्यते ।
वैसा होनेपर इस कारणसे यह बात प्रसिद्ध हो ही जाती है कि अचेतन जब इन्यों के स्वभावोंसे पृथग्भूत स्वभावों करके सर्वदा चेतनपनेका अनुगमन करनेवाला आला ही सूक्ष्ममूत विशेष है और वही ज्ञानका उपादान कारण है जोकि पृथ्वी आदिकके स्वभावोंसे सर्वथा रहित है। इस प्रकार रूप, रस, आदिकसे रहित हो रहा और अपने स्वयं स्यसंवेदनप्रत्यक्षका विषय तथा दूसरे वचन चेष्टा, आदि द्वारा अनुमान करने योग्य वह सूक्ष्मभूत ही हमारा आत्मा है। आत्माको नहीं जानने वाले चाकको पांचवा नेउन तत्व अगत्या स्वीकार करना पड़ेगा । चावीकने अनाथ