SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 216
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वस्वार्थचिन्तामणिः वास्तविक सिद्धि न हो सकेगी। कस्थित धूमस परमार्थ अमिकी सिद्धि नहीं होती है। जिससे कि उत्पाद, व्यय, बद्ध बन्धक, मोचक, बन्ध और मोक्षमे रहित हो रहे, केवल प्रतिभास सामान्यकी श्रद्धासे मोक्षमार्गके उपदेशोंका दूर फेंकना ही यो स्वीकार कर लिया जावे । अर्थात् बन्ध, मोक्ष आदिसे रहित केवल पतिमास चैतन्यकी वास्तविक सिद्धि होगवी होती तब तो द्वैतवादमें होनेवाले मोक्षमार्गके उपदेश देनेका भी दूर फैंक देना मान लिया जाता, किन्तु जब अद्वैत की सिद्धि ही नहीं हुयी तो द्वैतवादियोंके यहां मोक्षमार्गका उपदेश वास्तविक सिद्ध होजाता है । तदेवं सस्वार्थशासनारम्भेऽहंध स्याद्वादनायकः स्तुतियोग्योऽस्तदोषत्वात् । अस्तदोषोऽसौ सर्ववित्वात् । सर्वविदसी प्रमाणान्वितमोक्षमार्गप्रणायकत्वात् । इसलिये अबतकके उक्त प्रकरणसे इस प्रकार सिद्ध होता है कि तत्वार्थशास्त्रके आरम्ममें स्यावाद श्रुतज्ञान सिद्धांतका बनानेवाला पथपदर्शक, नायक श्रीअर्हन्तदेव ही स्तवन करने योग्य है, क्योंकि वह अज्ञान, रागद्वेष आदि भावदोषोंसे और ज्ञानावरण आदि द्रव्य दोषोंसे रहित है। जिनेंद्र देवने तपस्या नामक प्रयत्नसे इन दोषोंका विनाश कर दिया है। इस अनुमान दिये गये हेतुको सिद्ध करते हैं कि वह जिनेंद्र ( १क्ष ) देव दोषोंको नष्ट कर चुका है ( साध्य ) क्योंकि वह युगपत् सम्पूर्ण पदार्थों को जानता है ( हेतु ) इस हेतुको भी पुष्ट करते हैं कि वह जिनेद्र देव सर्वज्ञ है (प्रतिज्ञा) क्योंकि वह प्रमाणोंसे युक्त मोक्षमार्गका प्रणयन करानेवाला है ( हेतु) उक्त तीनों अनुमानोंसे " मोक्षमार्गस्य नेतारं भेत्तारं कर्मभूभृताम् । ज्ञातारं विश्वतत्वानां वंदे तद्गुणलब्धये " इस श्लोकके तीनों विशेषण सिद्ध कर दिये हैं। ये तु कपिलादयोऽसर्वशास्ते न प्रमाणान्वितमोक्षमार्गप्रणायकास्तत एयासर्वज्ञत्वाभास्तदोषा इति न परीक्षकजनस्तवनयोग्यास्तेषां सर्वथेहितहीनमार्गस्वान् सर्वथैकान्तवादिना मोक्षमार्गव्यवस्थानुपपत्चेरिस्युपसंहियते ।। उक्त अनुमानों में व्यतिरेक दृष्टान्त दिखलाते हैं कि जो कपिल, बुद्ध, ईश्वर आदि तो सर्वज्ञ नहीं है, वे प्रमाण-प्रतिपादनपूर्वक मोक्षमार्गके पनानेवाले मी नहीं हैं। और उस ही कारणसे जब वे मोक्षमार्गके बनानेवाले नहीं है उससे अनुमित होता है कि चे सर्वज्ञ भी नहीं है। सर्वज्ञ न होनेसे वे दोषोंके ध्वंस करनेवाले भी नहीं हैं। इस कारण ' परीक्षाप्रधानी पुरुषोंके स्तुति करने योग्य नहीं हैं । समव्याप्तवाले साध्य हेतुओंको उलटा सीधा कर सकते हैं। उक्त तीनों अनुमानो में दिये गये हेतु ज्ञापक हेतु है। धूम अनिके समान उलटा कर देनेसे ये कारक हेतु बनजाते हैं। जैसे कि अमिका धूम ज्ञापक हेतु है। किन्तु घूमका अमि कारक हेतु है । वैसे ही वोपहितपनेका सर्वज्ञस्य ज्ञापक हेतु है, किन्तु सर्वज्ञत्वका दोषरहितपना कारक हेतु है। ऐसे ही अन्यत्र समझ
SR No.090495
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1949
Total Pages642
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy