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________________ तत्त्वार्थचिन्तामणिः १७७ हेवाभास भी नहीं है । इससे सिद्ध हुआ कि गुण आदिकोका अपने आधारभूतद्रव्योंसे कथंचित् तदात्मकरूप-परिणतिसे प्रकाशन होना असिद्ध नहीं है और उस हेतुका साध्य माना गया द्रव्यका ‘पर्यायपना मी असिद्ध नहीं है । जिससे कि उदाहरण, साध्य अथवा साधनसे रहित माना जाता, तथा समवायसम्बन्ध मी अर्थकी पर्याय सिद्ध न हो पाता । भावार्थ-गुण, क्रिया, आदि दृष्टांतके समान समयाय भी सदात्मक-परिणतिरूप प्रतीति होनेसे व्यका ही परिणाम सिद्ध होता है । युक्तियोंसे जच गयी चातको विचारवान मान लिया करते है हठ नहीं रखते हैं। सिद्धेऽपि समवायस्य द्रव्यपरिणामत्वे नानात्वे च किं सिद्धमिति प्रदर्शयति--- कुछ परिझान कर वैशेषिक कहते हैं कि समवाय सम्बन्धको द्रव्यका तदात्मक परिणामपना सिद्ध हो गया और अनेकपना भी सिद्ध हो गया। एतावता प्रकृतमें क्या बात सिद्ध हुयी ? मताओ इसका सुन्दर उचर आचार्य स्वयं दिखाते हैं। तदीश्वरस्य विज्ञानसमवायेन या ज्ञता। सा कथंचित्तदात्मत्वपरिणामेन नान्यथा ॥ ७५ ॥ तथानेकान्तवादस्य प्रसिद्धिः केन वार्यते । प्रमाणबाधनानिन्नसमवायस्य तद्वतः ॥ ७६ ॥ इस कारण वैशेषिक लोगोंने विज्ञानके समवायसम्बन्ध करके ईश्वरको जो सर्वज्ञता सिद्ध की थी वह कथंचित् तदात्मकरवपरिणामसे ही सिद्ध होसकती है । भिन्न पडे हुए समवाय, या विशेपणविशेष्य, इन दूसरे प्रकारोंसे नहीं बन सकती है । तया इस प्रकार ज्ञान और आत्माका तादास्यसम्बन्ध सिद्ध हो जानेसे अनेकान्त कहनेवाले स्याद्वादियोंका सिद्धान्त प्रसिद्ध होजाता है। उसको कोई रोक नहीं सकता है। सर्वथा भिन्न माने गये समवायसम्बन्धसे ज्ञानको आत्मामे रखना प्रमाणोंसे बाधित है । अतः उस समवायवाले इष्ट किये गये दोनों सम्बन्धियोंसे बीच भिन्न होकर समयका रहना प्रमाणसे सिद्ध नहीं होसका है | इस बातको हम पहिले कह चुके हैं। ससुभाम पानी डालनेस लिबलियापन उत्पन्न होकर विशिष्ट रस और बन्ध विशेष होजाता है यह रस और बन्धरूप तदात्मपरिणति सत्तुओं की ही है, उनसे सर्वथा भिन्न कोई पदार्थ नहीं। तदेवं समवायस्य तद्वतो भिन्नस्य सर्वथा प्रत्यक्षादिषावनात्सदबाधितद्रव्यपरिणामविशेषस्य समवायप्रसिद्धीनसमवायात् शो महेश्वर इति कथंचिचादात्म्पपरिणामादेवोक्ता स्यात् ।
SR No.090495
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1949
Total Pages642
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size19 MB
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