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तत्त्वार्थ चिन्तामणिः
यदि इस समवायको आपके कहनेसे नाना प्रकारके आत्मा, आकाश, रूप, घटल, चलना, फिरना आदि समवायियोंका विशेषण होना मान भी लिया जाये तब तो उस समवायरूप विशेषret अपना प्राप्त होता है, जैसे कि पुरुष, भूतल, देवदत्त आदि संयोगियोंके विशेषण होनेसे दण्ड, चटाई, कुण्डल आदि अनेक हैं और इनके संयोगसम्बन्ध भी अनेक हैं | इनहीके समान समवाय भी अनेक हो जायेंगे ।
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सत्यपि समवायस्य नानासमवायिनां विशेषणत्वे नानात्वप्राप्तिर्दण्डकटादिवत् ।
अनेक समवायियोंका विशेषण हो जाना होते हुए भी समवायको अनेकत्र अवश्य प्राप्त हो जाता है। जैसे कि वक्त है । यहां दण्ड चटाईरूप विशेषण अनेक हैं। क्योंकि
न हि युगपन्नानार्थविशेषणमेकं दृष्टम् सचं दृष्टमिति चेन्न तस्य कथञ्चिनानारूपस्वात्, तदेकत्वैकान्ते घटः सन्निति प्रत्ययोत्पत्तौ सर्वथा सत्वस्य प्रतीततत्वात् सर्वार्थसच्वप्रतीत्यनुषंगात्कचित्सचा संदेहो न स्यात् ।
एक ही समय अनेक पदार्थोंका जो विशेषण है वह अनेक है, एक नहीं देखा गया है। यदि यहां वैशेषिक यह कहें कि देखो, सत्ताजाति एक समयमै द्रव्य आदि अनेक पदार्थों में रहती है किंतु वह सत्ता एक ही है। ग्रंथकार कहते हैं कि इस प्रकार कहना ठीक नहीं है। क्योंकि जैन सिद्धांतमेंद्रस्वरूपसे तीनों कालोंमें विद्यमान रहनारूप परिणामोंको सत्ताजाति माना है । वह जाति भनेक पदार्थों में तादात्म्य संबंध से रहती हुयी कथंचित् अनेक है यह प्रमाणसिद्ध है । यदि उस सत्ताको एक माना जायेगा तो सत्तावाला घट सत्रूप विद्यमान है । ऐसे ज्ञानके उत्पन्न हो जाने पर सर्व प्रकार से सचाकी प्रतीति हो ही चुकी है। क्योंकि आपकी मानी हुई सत्ता एक ही है । एक घटकी सत्ता के जाननेपर पूरी सत्ताका ज्ञान होना स्वाभाविक है । तथा च संपूर्ण पदार्थों की साके जान लेनेका प्रसंग आवेगा । एक पदार्थके सद्रूपसे जानलेने पर सभी सर्वज्ञ हो जायेंगे | अतः किसीको किसी पदार्थमें सत्ताका संदेह नहीं होना चाहिये | किन्तु अनेक पदार्थोंके सन्देह होते देखे जाते हैं । अतः सत्ता जाति एक नहीं है ।
स सर्वात्मना प्रतिपन्नं न तु सर्वार्थास्तद्विशेष्या इति तदा कचित्सतासन्देहे घटविशेषणत्वं सश्वस्यान्यदन्यदर्थान्तरविशेषणत्वमित्यायातमनेकरूपत्वम् |
यदि यहां कोई कहे कि विशेषणरूप सत्ता नामकी जातिको हमने पूर्णरूपसे जान लिया है किंतु उस जाति आधारभूत सम्पूर्ण विशेष्य अर्थोंको नहीं जान पाया है। इस कारण उस