SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्त्वार्थ चिन्तामणिः ...... .. ....... कि यह कहना युक्तिसे रहित है, क्योंकि विपक्षमें म रहनेका यदि नियम नहीं किया जायेगा तो साध्यके बिना न रहनेरूप हेतुके गुणका नाश हो जायेगा और सपक्षभे हेतुकी असत्ताका नियम न करनेपर हेतुका रत्तीभर भी कोई गिाड होता नहीं है। इति तत्र सनसन् वा साध्याविनाभावी हेतुरेव श्रावणत्वादिः सञ्चादिवत्, तद्वन्मोक्षमार्गत्वादिति हेतु साधारणत्वादगमकः,साध्यस्य सम्यग्दर्शनशानचारित्रात्मकत्वस्यामावे ज्ञानमात्रात्मकवादी सर्वथानुपपन्नत्वसाधनात् । इस कारण यह सिद्ध हुआ है कि उस सपक्षमें हेतु विद्यमान रहे अथवा न रहे । यदि वह सायके साथ अविनाभाव संबंधरूप व्याप्ति रखता है तो वह अवश्य सहेतु है। आपने सत्व, कृतकय आदिकको जैसे सद्धेतु माना है उसी प्रकार श्रावणस्त्र आदि भी सद्धेतु हैं और सपक्षमै न . रहनेपर भी मोक्षमार्गव हेतु सत्व आदि हेतुके समान सद्धतु है । असाधारण हेवामास होनेसे साध्यको नहीं ज्ञापन करनेवाला है यह कटाक्ष ठीक नहीं है। किन्तु अविनाभाव-संबंधके होनेसे सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र इन तीनोंकी एकतारूप साध्यका साधक ही है । जहां तीनोंकी तदात्मक एकता नहीं है ऐसे अकेले ज्ञान या कोरी श्रद्धा, भक्ति, तथा कुज्ञान आदिमें सभी प्रकारोंसे मोक्षमार्गव हेतु सिद्ध नहीं माना गया है । यदि पुनः सपक्षविपक्षयोरसत्त्वेन संशयितोऽसाधारण इति मतं तदा पक्षप्रय चितथा निश्चितया संशयितया वानैकान्तिकत्वं हेतोरित्यायातम्, न च प्रकृतहतो सास्तीति गमकत्वमेव । पूर्वमें असाधारण हेत्वाभासका लक्षण करते समय दो पक्ष उठाये थे, उनमें सपक्ष और विपक्ष न रहनेपनेसे निश्चित किये गयेरूप असाधारण हेत्वामासके लक्षणका खण्डन हो चुका । अब सपक्ष और विपक्षमें नहीं रहने के संशयको प्राप्त हुआ हेतु असाधारण हेत्वाभास है, यदि ऐसे दूसरे पक्षकारका मत ग्रहण करोगे, तब तो अनैकान्तिक हेत्वाभासका यह लक्षण आया कि पक्ष, सपक्ष और विपक्ष निश्चतरूपसे विद्यमान रहनेवाला और संशयरूपसे रहनेवाला हेतु अनैकान्तिक हेवाभास है । निश्चितरूपसे तीनों पक्षोभ रहना तो साधारण हेलाभासका लक्षण आप मानही चुके हैं और अब तीनों पक्षों संशयरूपसे रहना असाधारणहेत्वाभासका लक्षण मान रहे हैं, अतः समुदित रूपसे यह अनेकान्तिकका लक्षण अच्छा है । हम भी व्यभिचारके संदिग्ध और निश्चित दो भेद मानते हैं, किन्तु प्रकरणमें प्राप्त हुये मोक्षमार्गव हेतु पक्ष, सपक्ष और विपक्षमें संशयरूपसे रहनापन तथा तीनों पक्षोंमें निश्चितरूपसे विद्यमानपन नहीं है, इस कारण निर्दोष होमेसे मोक्षमार्गस्त हेतु अपने साध्यका शायक ही है अनैकान्तिक नहीं है ।
SR No.090495
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1949
Total Pages642
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy