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________________ तत्वापंसार इस गुणस्थानको ग उप.शपक और पर कहा या है। यहां समा इसके आगे किसी भी आयुका बन्ध नहीं होता। क्षपकणी मांढ़नेवालोंके आयुबन्ध होता ही नहीं है और उपशमश्रेणी वे जीव ही माढ़ते है जिन्हें या तो देवायुका बन्ध हो चुका हैं या किसी आयुका बन्ध नहीं हुआ है। जिन्हें किसी आयुका बन्ध नहीं हुआ है वे पतन कर जब सप्तम या इसके नीचेंके गुणस्थानोंमें आते हैं तब देवायुका बन्ध करते हैं। जिन जीवोंके उसी पर्यायमें उपशमवणीके बाद क्षपकश्रेणो मांदनेका प्रसङ्ग आता है वे भी आयुका बन्ध नहीं करते है ।। ५ ।। अनिवृतिकरण गुणस्थानका स्वरूप कर्मणां स्थूलभावेन शमकः क्षपकस्तथा । अनिवृत्तिरनिवृत्तिः परिणामवशाद्भवेत् ॥२६।। अर्थ-जो कर्मोका स्थूलरूपसे उपशम अथवा क्षय करनेवाला है तथा परिणामोंकी अनिवृत्ति-विभिन्नतासे रहित है वह अनिवृत्तिकरण गुणस्थानवाला है। भावार्थ-दशम गणस्थानकी अपेक्षा नवम गण स्थानमें कर्मोंका उपशम अथवा क्षय स्थूलरूपसे होता है। तथा इस गुणस्थानवी जीवोंक परिणामोंमें विभिन्नता नहीं रहती। यहाँ एकसमयमै एक जीवके एक ही परिणाम होता हैं अतः समसमयवर्ती जोबोंके परिणाम समान ही रहते और भिन्न समयवर्ती जीवोंके परिणाम भिन्न रहते हैं। अनिवृत्तिकरणरूप परिणामोंसे आयु कमको छोड़कर शेष सात कर्मोकी गुणश्रेणी निर्जरा, गणसंक्रमण, स्थितिखण्डन तथा अनुभागकाण्डकखण्डन होता है और मोहनीयकर्मको बादरकृष्टि तथा मूक्ष्मकृष्टि आदि होती है। इस गुणस्थानमें भी उपशम और क्षपक दोनों श्रेणियाँ रहती है ॥ २६ ॥ सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थानका स्वरूप सूक्ष्मत्वेन कपायाणां शमनाक्षपणात्तथा । स्यात्सूक्ष्मसांपरायो हि सूक्ष्मलोभोदयानुगः ।।२७|| अर्थ--जो कषायोंके उपशमन अथवा क्षपण करनेके कारण उनकी सूक्ष्मतासे सहित है बह सूक्ष्मसाम्पराय नामक गुणस्थानवर्ती कहलाता है । इस गुणस्थानमें रहने बाला जीव सिर्फ संज्वलनलोभके सूक्ष्य उदयसे युक्त होता है। भावार्थ-इस गुणस्थानमें उपशमश्रेणीवाला जीव संज्वलन क्रोध-मानमायाका उपशम कर चुकता है और क्षपकश्रेणीवाला जीव उनका क्षय कर चुकता है, सिर्फ संज्वलनलोभका मंद उदय विद्यमान रहता है इसलिये इसे सूक्ष्मसाम्पराय कहते हैं । २७ ।।
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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