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________________ प्रस्तावना .:..ucki निचयमबुध्यमानो यो निश्चयतस्तमेव संश्रयते । नाचायति करणचरणं स बहिःकरणालसो बाल: ।। जो निश्चयको न जानता हुआ निश्चयसे उसीका आश्रय लेता है बाह्य क्रियाओंके करनेमें आलसी हुआ यह अज्ञानी प्रतिकृय चारित्रको नष्ट कर देता है। जो एकांतसे निश्चय और व्यवहारको पकड़ कर बैठे हैं वे निश्चयाभासी तथा व्यवहाराभासी है इसी तरह जो निश्चय और व्यवहारके ठोक-ठोक स्वरूपको नसमशकर छानोंको अंगीकृत करते हैं वे भी उभयाभासी है। ये तीनों प्रकारके जोव मोक्षमार्ग से बहिर्भूत हैं। इस तरह यह तत्वार्थसार ग्रन्थ अल्पकाम होनेपर भी मोक्षमार्गका सांगोपांग वर्णन करनेवाला होने से मोक्षशास्त्र ही है। इसीलिये ग्रन्थान्तमें पुष्पिकावाक्य के द्वारा कहा गया है--'इति श्रीमदमृतचन्द्रसूरीणां कृतिः तत्त्वार्थसारो नाम मोसशास्त्रं समाप्तम् ।' इस तरह अमृतचन्द्रसुरिकी कृति तत्वार्थसार नामका मोक्षशास्त्र समाप्त हुआ । तत्त्वार्थसारका यह संकरण तत्त्वार्थसारका यह संकरण प्रथमगुच्छकमें प्रकाशित तत्त्वार्थसारके मूलमात्रसंग्रहसे तैयार किया गया है । यद्यपि उस संग्रहमें परम्परासे कुछ पाठ अशुद्ध हो गये है तथापि उन्हें राजवातिक आदि ग्रन्थोंके तुलनात्मक अध्ययनसे ठीक कर लिया गया है। श्री. राजारामजी भोपालकी खास प्रेरणासे इसके संपादन और अनुवाद करने में प्रवृत्ति हुई। कार्य पूर्ण होनेपर मैंने पाण्डुलिपि उक्त ब्रह्मचारोजीके पास भेज दी। उन्होंने प्रारम्भमें कुछ पाठभेद श्रीमान 4. वंशीघरजी शास्त्री सोलापुरकी टीकासे लेकर इसमें शंकित किये हैं। मैं पण्डितजीकी टोकाको देखनेका सौभाग्य प्राप्त नहीं कर सका। ____ मूलानुगामी अनुवाद ही मुझे अधिक पसंद है। अत: मूलानुगामो संक्षिप्त अनुवाद ही मैंने इसमें किया है। जहां विषमको स्पष्ट करने के लिये विस्तारको आवश्यकता मालुम हुई यहाँ गोमटसार, सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक मादि ग्रन्थों से सार लेकर भावार्थ में उसे संग्रहीत किया है । तत्त्वार्थसूत्र जन-जनको श्रद्धाका भाजन है क्योंकि उसमें प्रथमानुयोग को छोड़कर तीन अनुयोगोंका सार समाया हुआ है। इसी प्रकार यह तत्वानुसार भी जन-जनको श्रद्धाका भाजन हो, ऐसी आशा है क्योंकि इसमें तत्त्वार्थमूत्रसे भी अधिक सामग्री संकलित है। जिन पदार्थों के लक्षण तत्त्वार्थसुत्रमें नहीं ला सके है उन्हें तत्त्वार्थसारका ने श्लोकोंके द्वारा स्पष्ट किया है। अतः नित्य स्वाध्याय के सिवाय यदि पश्नक्रम में भी इसका समावेश किया जाय तो छात्र सरलतासे वस्तुस्वरूपको समझ सकेंगे। सर्वार्थसिद्धि के विकल्पमें यह रखा जा सकता है । परिशिष्टमें श्लोकानुक्रमणीके बाद लक्षणकोष दिया गया है जिससे किस पदार्थका लक्षण कहाँ है इसे पायक अनायास खोज सकेंगे। प्रारम्भमें विस्तृत विषयसूची भी है। प्रस्तावनामें तस्वार्थ सूत्र तथा उसकी दीकाओं और टीकाकारोंपर प्रकाश डालनेके सिवाय अमृतचन्द्रसूरिका भी परिचय दिया गया है । तस्वार्थसारका प्रतिपाद्य विषय .. . . in
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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