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________________ षष्ठाधिकार तप भी संवरका कारण है तपस्तु वक्ष्यते तद्धि मुम्यम्भावयतो यतेः । स्नेहक्षयात्तथा योगरोधाद्भवति संवरः ॥५१॥ अर्थ-तपका वर्णन आगेके अधिकारमें किया जावेगा। जो मुनि उस तपकी अच्छी तरह भावना रखता है उसके स्नेह-कषायका क्षय होने तथा योगोंका निरोध होनेसे संवर होता है ।। ५१ ।। संबर तत्त्वका उपसंहार इति संवरतत्वं यः श्रद्धत्ते वेत्युपेक्ष्यते । शेषतत्त्वः समं षभिः स हि निर्वाणभाग्भवेत् ।।५२।। अर्थ-इस प्रकार जो शेष छह तत्त्वोंके साथ संवर तत्त्वकी श्रद्धा करता है, उसे जानता है और उसकी उपेक्षा करता है वह निश्चयसे निवाणको प्राप्त होता है ।। ५२॥ इस प्रकार श्रीअमृतचन्द्राचार्य द्वारा विरचित तत्वार्थसारमें संवरतत्वका वर्णन करनेवाला पष्ठ अधिकार पूर्ण हुआ।
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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