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________________ प्रस्तावना । परमतका अफाटम यक्तियों द्वारा निरसन किया गया है। प्रन्थोंकी शैली अत्यन्त गढ, संक्षिप्त, अर्थबहल और सूत्रात्मक है । इसीसे उत्तरवर्सी हरिभद्रादि आचार्यों द्वारा अकसंकध्यायका संमानपूर्वक उल्लेख किया गया है। इतना ही नहीं, जिनदासगणी महत्तर जैसे विद्वानोंने उनके सिद्धिविनिश्चय' ग्रन्थका अबलोकन करनेकी प्रेरणा भी की है। इन सब कारणोंसे अकलंक भट्टको महत्ताका स्पष्ठ आभास मिल जाता है 1 वर्तमानमें इनको निम्न कृतियाँ उपलब्ध है १. लघीयस्त्रय, २. न्यायविनिश्चय, ३. सिद्धिविनिश्चय, ४. अष्टशतो ( देवागम टीका ), ५, प्रमाणसंग्रह स्वोपज्ञ भाष्य सहित, ६, तत्त्वार्थ राजवातिक, ७. स्वरूपसबोधन और ८. अकलंक स्तोत्र । अकलंकदेवका समय विक्रमको सातवीं शताब्दी है क्योंकि विक्रम संवत ७०० में उनका बौद्धों के साथ महान् विवाद हुआ था, जैसा कि निम्न पद्मसे स्पष्ट है विक्रमार्फताब्दीयशतसप्तप्रमानुषि । कालेऽकलंकमतिनी बौद्धर्वादो महानभूत् ॥ नन्दिसूत्रकी चूर्णिमें प्रसिद्ध श्वेताम्बर विद्वान् श्राजिनदासगणा महत्तरने सिद्धिविनिश्चय' नामके ग्रंथका बड़े गौरवके साथ उल्लेख किया है। जिसका रचनाकाल शकसंवत् ५९८ अर्थात् वि० संवत् ७३३ है। जैम्रा कि उसके निम्न वाक्यसे प्रकट है करालः परमाणु बमते माक्षिणागु भटनतिए नन्धपनचूणिः समाप्ता। चणिका यह समय मुनि जिनविजयने ताइपोय प्रतियों के आधारसे ठीक बतलाया है। विद्यानन्द तत्त्वार्थश्लोकवातिकके कर्ता आचार्य विद्यानन्दस्वामी हैं। ये महान् श्रुतधर आचार्य थे । दर्शनशास्त्रके पारंगत विद्वान् धे, नैयायिक, वैशेषिक, मीमांसक आदि दर्शनोंका प्रगाढ़ अध्ययन आपने किया था। आपके द्वारा निर्मित १, अष्टसहस्री, २ विद्यानन्द महोदय, ३. आप्तपरीक्षा, ४. प्रमाणपरीक्षा, ५. पत्रपरीक्षा, ६ सत्वशासनपरीक्षा और ७. तस्वार्थश्लोकवार्तिक संथ उपलब्ध है। आपका समय शक संवत् ६९७ से शक संवत् ७६२ विक्रम संवत् ८२२ से ८९७ तक माना जाता है। बालचन्द्रमुनि तत्त्वरत्नप्रदीपिकाफे रचयिता थीबालचन्द्र मुनि है। यह नयकोति सिद्धान्तचक्रघर्तीके शिष्य थे। इन्होंने १२२६ विक्रम संवत्के लगभग तत्त्वरत्नप्रदीपिका टीकाको रचना की है। यह टीका कर्णाटकभाषामें है । वालचन्द्र मुनि कन्नडकवि हैं तथा अनेक प्राकृत और संस्कृत ग्रन्योंके टीकाकार है। भास्करनन्दि सुखायोषवृत्ति के रचयिता भी भास्करनन्दि है। इन्होंने ग्रंपके अन्त में जो प्रशस्ति दो
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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