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________________ १५२ तत्त्वापार असंप्रामसपाटिकासंहनन-जिस कर्मके उदयसे हाड़ नसों से बँधे हों, कीलों से युक्त न हों उसे असंप्राप्तसृपाटिकासंहनन कहते हैं। ___स्पर्श—जिसके उदयसे शरीरमें स्पर्शकी रचना हो उसे स्पर्शनामकर्म कहते हैं इसके कर्कश, मद्, लघु, गुरु, स्निग्य, रूक्ष, शीत और उष्ण ये आठ भेद हैं। रस-जिसके उदयसे शरीरमें रसकी रचना हों उसे रसनामकर्म कहते हैं इसके मधर, अम्ल, कट, तिक्त और कषाय ये पांच भेद हैं। वर्ण-जिसके उदयसे शरीरमें वर्णकी रचना हो उसे वर्णनामकर्म कहते हैं इसके शुक्ल, कृष्ण, नील, लाल और पोला ये पाँच भेद हैं । गन्ध-जिसको उदयसे शरीरमें गन्धकी रचना हो उसे गन्धनामकर्म कहते हैं इसके सुगन्ध और दुर्गन्ध थे दो भेद हैं। _____ आनुपूर्वी--जिसके उदयसे विग्रहगतिमें जीवके प्रदेशोंका आकार पूर्व शरीरके समान रहता है उसे आनुपूर्वीनामकर्म कहते हैं। इसके नरकगत्यानुपूर्वो, तिर्यम्गत्यानुपूर्वी, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और देवगत्यानुपूर्वी ये चार भेद हैं। उपधात-जिसके उदयसे अपना ही घात करनेवाले अङ्गोपाङ्गोंकी रचना हो उसे उपधातनामकर्म कहते हैं। ___ परघात–जिसके उदयसे दूसरोंका घात करनेवाले अङ्गोपाङ्गोंकी रचना हो उसे परघातनामकर्म कहते हैं । ___ अगुरुलघु–जिसके उदयसे ऐसे अङ्गोपाङ्ग हों जो न भारी हों और न लघु हों उसे अगुरुलघुनामकर्म कहते हैं। उसछ्यास-जिस कर्मके उदय श्वासोच्छ्वास होता है उसे उच्छ्वासनामकर्म कहते हैं। आतप-जिस कर्मके उदयसे ऐसा शरीर प्राप्त हो जिसका मूल तो शीत रहे परन्तु प्रभा उष्ण हो उसे आतपनामकर्म कहते हैं । उद्योत--जिसके उदयसे ऐसा शरीर प्राप्त हो जिसका मूल और प्रभा दोनों ही शीतल रहें उसे उद्योतनामकर्म कहते हैं। विहायोगति-जिसके उदयसे आकाशमें गति हो उसे विहायोगतिनामकर्म कहते हैं, इसके प्रशस्तविहायोगति और अप्रशस्तविहायोगति ये दो भेद हैं। प्रत्येकशरीर-जिसके उदयसे ऐसा शरीर प्राप्त हो जिसका एक जीव ही स्वामी हो उसे प्रत्येकशरीरनामकर्म कहते हैं । साधारणशरीर-जिसके उदयसे ऐसा शरीर प्राप्त हो जिसके अनेक जीव स्वामी हों उसे साधारणशरीरनामकर्म कहते हैं। प्रस-जिसके उदयसे इस जीवका द्वीन्द्रियादि जीवोंमें जन्म होता है उसे असनामकर्म कहते हैं।
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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