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________________ पञ्चमाधिकार संघात-जिस कर्मके उदयसे औदारिक आदि शरीरोंके परमाणु परस्पर छिद्र रहित सम्बन्धको प्राप्त हों उसे संघातनामकर्म कहते हैं। इसके औदारिक संघात आदि पाँच भेद हैं । संस्थान—जिसके उदयसे शरीरको आकृति विशेषकी रचना होती है उसे संस्थाननामकर्म कहते हैं इसके समचतुरस्र आदि छह भेद हैं । इनके लक्षण इस प्रकार है समचतुरस्त्रसंस्थान—जिसके उदयसे शरीरकी आकृति सुडौल हो उसे समचतुरस्रसंस्थान कहते हैं। न्यग्नोधपरिमण्डलसंस्थान-जिसके उदयसे शरीरकी आकृति न्यग्रोधबट बक्षके समान हो अर्थात नाभिनीनेका भाग छोटा और ऊपरका भाग बड़ा हो उसे न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थान कहते हैं। स्वातिसंस्थान-जिसके उदयसे शरीरकी आकृति स्वाति--साँपकी वामीके समान हो अर्थात् नाभिसे नीचेका भाग बड़ा और ऊपरका भाग छोटा हो उसे स्वातिसंस्थान कहते हैं। ___ कुब्जकसंस्थान-जिसके उदयसे शरीर कुबड़ा हो उसे कुब्जकसंस्थाननामकर्म कहते हैं। वामनसंस्थान-जिस कर्मके उदयसे शरीर बौना हो उसे वामनसंस्थान कहते हैं। ___हुण्डकसंस्थान-जिस कर्मके उदयसे शरीरको रचना किसी निश्चित आकारकी नहीं होती उसे हुण्डकसंस्थाननामकर्म कहते हैं । ____ संहनन—जिस कर्मके उदयसे संहनन-हड्डियोंकी रचना होती है उसे संहनननामकर्म कहते हैं। इसके वर्षभनाराच आदि छह भेद हैं। इनके लक्षण इस प्रकार है वज्रर्षभनाराचसंहनन-जिसके उदयसे घनके हाड, वनके वेष्टन और बज्रकी कोलें हों उसे वर्षभनाराचसंहनननामकर्म कहते हैं। वनाराचसंहनन—जिसके उदयसे वज्रके हाड़ और बचको कीलें होती हैं परन्तु वेष्टन वज्रके नहीं होते उसे वज्रनाराचसंहनन कहते हैं। नाराषसंहनन--जिस कर्मके उदयसे वनरहित वेष्टन और कीलोंसे सहित हाड़ हों उसे नाराचसंहनननामकर्म कहते हैं ! ____ अर्द्धनाराचसंहनन-जिस कर्मके उदयसे हाड़ोंकी संधियाँ आधी कोलित हों उसे अर्द्धनाराचसंहननकर्म कहते हैं । ___ कीलकसंहनन-जिस कर्मके उदयसे हाड़ परस्पर कीलित हों उसे कोलक संहनन कहते हैं।
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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