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________________ पश्यमाधिकार अर्थ-'जिनेन्द्र भगवान्के द्वारा कहा हुआ अहिंसादि लक्षण धर्म है या नहीं' इस प्रकार जिसमें बुद्धिका भ्रम रहता है वह सांशयिकमिथ्यात्व है ॥५॥ विपरीतमिथ्यात्वका लक्षण सग्रन्थोऽपि च निर्ग्रन्थो ग्रासाहारी च केवली । रुचिरेवंविधा यत्र विपरीतं हि तत्स्मृतम् ॥ ६ ॥ अर्थ-परिग्रह सहित भी गुरु होता है और केवली कवलाहारी होता है इस प्रकारकी जिसमें श्रद्धा होती है वह विपरीतमिथ्यात्व है ॥ ६ ॥ आज्ञानिकमिथ्यात्वका लक्षण हिताहितविवेकस्य यत्रात्यन्तमदर्शनम् । यथा पशुवधो धर्मस्तदाज्ञानिकमुच्यते ॥ ७ ॥ अर्थ-जिसमें हित और अहितके विवेकका अत्यन्त अभाव होता है, जैसे पशुवध धर्म है, वह आज्ञानिकमिथ्यात्व कहा जाता है ।। ७ ॥ वैनयिकमिथ्यात्वका लक्षण सर्वेषामपि देवानां समयानां च तथैव च । यत्र स्यात्समदर्शित्वं ज्ञेयं वैनयिकं हि तत् ।। ८॥ अर्थ-जिसमें सभी देवों और सभी धर्मोंको समान देखा जाता है उसे वेनयिकमिथ्यात्व जानना चाहिये ॥८॥ बारह मकारका असंयम घड्जीवकायपश्चाक्षमनोविषयभेदतः । कथितो द्वादशविधः सर्वविद्भिरसंयमः ॥९॥ अर्थ-छहकायके जीव तथा पाँच इन्द्रिय और मनसम्बन्धी विषयके भेदसे सर्वज्ञ भगवान्ने बारह प्रकारका असंयम कहा है। भावार्थ-पृथिवीकायिक आदि पाँच प्रकारके स्थावर तथा अस इन छह कायके जीवोंका घात करना तथा स्पर्शनादि पांच इन्द्रियों और मनके विषयों में प्रवृत्ति करना इस तरह बारह प्रकारका असंयम होता है ॥ ९॥ प्रमावका लक्षण शुद्धयष्टके तथा धर्म क्षान्त्यादिदशलक्षणे । योऽनुत्साहः स सर्वतः प्रमादः परिकीर्तितः ॥१०॥
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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