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सस्वार्थसार पाठ वगैरहकी स्मृति नहीं रखना ये पांच सामायिक शिक्षा तके अतिचार हैं।॥ १४ ॥
प्रोषधोपवास शिक्षाबतके अतिचार संस्तरोत्सर्जनादानमसंदृष्टाप्रमार्जितम् ।
अनादरोऽनुपस्थानं स्मरणस्येति पञ्च ते ॥१५।। अर्थ-भूखसे व्याकुल होकर विना देखे तथा विना शोधे हुए स्थानपर विस्तर आदिका बिछाना, मलमूत्रका छोड़ना, किसी वस्तुका रखना उठाना, अनादरके साथ उपवास करना और उपवासके दिनका स्मरण भूल जाना अथवा विधिका स्मरण नहीं रखना ये प्रोषधोपचास शिक्षाबतके अतिचार हैं ।। ९५ ॥
भोगोपभोगपरिमाणवतके अतिचार सचित्तस्तेन सम्बन्धस्तेन सम्मिश्रितस्तथा ।
दुःपक्वोऽभिषवश्वमाहाराः पञ्च पञ्च ते ॥१६॥ अर्थ सचित्ताहार, सचित्त सम्बन्धाहार, सचित्तरांमिश्रिताहार, दुःपक्वाहार और अभिषयाहार ये पांच भोगोपभोगपरिमाणवतके अतिचार हैं। ___ भावार्थ-भोग और उपभोगकी अनेक वस्तुएँ हैं ! अतः उन सबसे सम्बन्ध रखनेवाले अतिचारोंका वर्णन करना अशक्य है यह विचारकर आचार्यने भोजनको प्रधानता देते हुए उसके अतिचारोंका वर्णन किया है। शेष वस्तुओंसे सम्बन्ध रखनेवाले अतिचार उपलक्षणसे समझ लेना चाहिये । अति चारोंका खुलासा इस प्रकार है-जैसे—किसीने नियम लिया कि आज मैं सचित्त भोजन नहीं करूंगा। पश्चात् भोजनके समय आई हुई सचित्त वस्तुके प्रमाद' या अज्ञानके कारण ग्रहण करना सचित्ताहार है। अथवा क्षुधा-तृषासे आतुर होनेके कारण शीघ्रता करनेवाले व्यक्तिकी सचित्त वस्तुओंके खाने-पीने अनुलोपन करने अथवा गीले वस्त्र आदिके धारण करने में प्रवृत्ति होना सचित्ताहार है। हरे पत्ते आदिमें रखे हुए अचित्ताहारको लेना सविससम्बन्धाहार है, हरे घना आदि सचित्तवस्तुओंसे मिली हुई दाल आदि अचित्त वस्तुओंको लेना सचित्तसंमिश्रिताहार है, अधजला या अधपका अचित्त भोजन ग्रहण करना दुःपक्याहार है और गरिष्ठ भोजन करना अभिषधाहार है ।। ९६ ।। १. कथमस्य सचित्तादिषु वृत्तिः ? प्रमादसंमोहाभ्यां सचित्तादिषु वृत्तिः । क्षुत्पिपासा
तुरत्वात् त्वरमाणस्य सचित्तादिषु अशनाय पानायानुलेपनाम परिधानाय वा बुत्तिर्भवति ।
( राजवातिक )