SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२८ तत्त्वार्थसारं हिंसा पापका लक्षण द्रव्यभावस्वभावानां प्राणानां व्यपरोपणम् । प्रमत्तयोगतो यत्स्यात् सा हिंसा संप्रकीर्तिता ||७४।। अर्थ--प्रमादके योगसे द्रव्य और भावप्राणोंका जो विधात करना है वह हिंसा कही गई है। भावार्थ-हिंसाका प्रमुख कारण प्रमादका योग है क्योंकि प्रमादका योग रहते हुए बाह्म में हिंसा न होनेपर भी हिंसा मानी जाती है और प्रमादका योग न होनेपर बाह्यमें हिंसा होनेपर भी हिंसा नहीं मानी जाती ।। ७४ ।। असत्य पापका लक्षण प्रमत्तधोगतो या स्वादत्तदर्थाभिभाषणम् । समस्तमपि विज्ञेयमनृतं तत्समासतः ॥७५।। अर्थ--प्रमादके योगसे जो असत् पदार्थका कयन होता है संक्षेपसे उस सभीको असत्य जानना चाहिये ।। ७५ ।। चोरी पापका लक्षण प्रमत्तयोगात् यत्स्याददत्तार्थपरिग्रहः । प्रत्येयं तत्खलु स्तेयं सर्व संक्षेपयोगतः ।।६।। अर्थ-प्रमादके योगसे जो बिना दिये हुए पदार्थका ग्रहण करना है संक्षेपसे उस सभीको चोरी जानना चाहिये ।। ७६ ।। मैथुन पापका लक्षण मैथुनं मदनोद्रेकादब्रह्म परिकीर्तितम् । अर्थ-कामके तोन्नोदयसे जो अब्रह्मका सेवन होता है वह मैथुन कहलाता है। परिग्रहपापका लक्षण ममेदमिति संकल्परूपा मूर्छा परिग्रहः ॥७७।। अर्थ-'यह मेरा है' इस प्रकारके संकल्परूप मूर्खाको परिग्रह कहते हैं ॥७७॥ व्रतीका लक्षण मायानिदानमिथ्यात्वशल्याभाचविशेषतः। अहिंसादिवतोपेतो व्रतीति व्यपदिश्यते ।।७८।।
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy