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________________ १०४ तत्वार्थसार स्कन्ध और अणुकी उत्पत्तिके कारण भेदात्तथा च संघातात्तथा तदुभयादपि । उत्पद्यन्ते खलु स्कन्धा भेदादेवाणवः पुनः || ५८ || अर्थ - मेदसे, संघातसे, और भेद संघात - दोनोसे स्कन्ध उत्पन्न होते हैं । परन्तु अणु भेदसे ही उत्पन्न होते हैं । भावार्थ - कितने हो स्कन्धोंकी उत्पत्ति मेदसे होती है। जैसे १०० परमाणु वाले स्कन्धसे १० परमाणु निकल जानेपर ९० परमाणु वाले स्कत्वकी उत्पत्ति हुई। कितने ही स्कन्धों को उत्पत्ति संघातसे होती है । जैसे १०० परमाणुवाले स्कन्धमें १० परमाणु मिल जानेसे ११० परमाणुवाले स्कन्धकी उत्पत्ति हुई । और कितने हो स्कन्धोंको उत्पत्ति भेद तथा संघात दोनोंसे होती है । जैसे १०० परमाणुवाले स्कन्धमेंसे १० परमाणु निकल जाने और १५ परमाणु मिल जानेसे १०५ परमाणुवाले स्कन्धकी उत्पत्ति होती है । परमाणुकी उत्पत्ति संघातसे न होकर भेदसे ही होती है। जैसे दो परमाणुवाले स्कन्धमें भेद होनेसे दो परमाणुओं की उत्पत्ति हुई ॥ ५८ ॥ परमाणुका लक्षण आत्मादिरात्ममभ्यश्च तथात्मान्तश्च नेन्द्रियैः । गृह्यते योऽविभागीच परमाणुः स उच्यते ॥ ५९ ॥ अर्थ - - वही जिसका आदि है, वही जिसका मध्य है, वही जिसका अन्त है, इन्द्रियोंसे जिसका ग्रहण नहीं होता तथा जिसके अन्य विभाग नहीं हो सकते वह परमाणु कहा जाता है । भावार्थ - एकप्रदेशी होनेसे जिसमें आदि, मध्य और अन्तका विभाग नहीं हो सकता, जिसके द्वितीयादिक विभाग नहीं हो सकते और जो इतना सूक्ष्म है कि इन्द्रियोंके द्वारा नहीं जाना जा सकता वह परमाणु कहलाता है ।। ५९ ॥ परमाणुकी अन्य विशेषता सूक्ष्मो नित्यस्तथान्तश्च कार्यलिङ्गस्य कारणम् । एकगन्धरसश्चैकवर्णो द्विस्पर्शकश्च सः ॥ ६० ॥ १ अत्तादि अत्तमज्यं अतंतं शेव इंदिये गे । जं दध्वं अविभागी तं परमाणुं विभाणाहि । ( पञ्चास्तिकाय )
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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