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________________ १४ तत्त्वार्थसार हरिमद्र, देवगुप्त, मलयगिरि तथा चिरन्तनमुनि आदिने भी इसपर टीकाएँ लिखी है। दिगम्बर जैनाचार्योको टीकाओंमें कुछके नाम इसप्रकार है१. स्वामिसमन्तभद्राचार्यकृत गन्धहस्तिमहाभाष्य २. पूज्यपादाचार्यकृत सर्वार्थसिद्धि वृत्ति ३. अकलंकमट्टकृत तत्त्वार्थ राजवातिकालंकार ४. विद्यानन्दस्वामीकृत तत्त्वार्थश्लोकयासिकालंकार ५. भास्करनन्दिकृत सुखबोधिनोटोका ६. विधसेनचन्द्राचार्यकृत तत्त्वार्थटीका ७. योगीन्द्र देवकूत तत्त्वप्रकाशिकाटोका ८. योगदेवमथित सस्वार्थका ९, लक्ष्मीदेवविरचित तत्वार्थटीका १०. अभमनन्दिसूरिकृत तात्पर्यतत्त्वार्थटोका ११. श्रुतसागरसूरिकृत तत्वार्थवृत्ति १२. बालचन्द्रमुनि प्रणीत तत्त्वरत्नप्रदीपिका इनमें प्रारम्भको ११ टोकाएँ संस्कृत भाषामें है और बालचन्द्र मनि प्रणोत बारहवीं टीका कर्णाटकभाषामें है। इनके सिवाय अनेक विद्वानोंने हिन्दी तथा गुजराती आदि प्रान्तीय भाषाओं में भी इस पर टीकाएं लिखा है। इन टीकाओंमें जिनका उल्लेख किया गया है उनमें स्वामिसमन्तभद्रका मन्महस्तिमहाभाष्म अब तक अप्राप्त है । फिर भी उत्तरवर्ती आचार्योने अपने-अपने अन्यों में उसका नामोल्लेख किया है। अत: उसका मस्तिस्व जाना जाता है । इस विषयके कुछ उल्लेख इस प्रकार है____ भास्करनन्दि आचार्यने चतुर्थाध्यायके ४२ वे सूत्रमें लिखा है.---'अपरः प्रपञ्चः सर्वस्य भाष्ये द्रष्टव्यः' । पश्चमाध्यायके द्वितीय सूत्रमें लिखा है 'अन्यस्तु विशेषो भाष्ये दृष्टव्यः ।' धर्मभूषणाचार्य विरचित न्यायदीपिकाम तद्धाष्यं-तत्रास्मभूतमाने रोष्ण्यमनात्मभूतं देवदत्तस्य दण्डः, । 'भाष्यं चसंशयो हि निर्णयविरोधोनत्यवग्रहः इति । तदुक्तं स्वामिभिर्महाभाष्यस्यादावाप्तमीमांसाप्रस्तावे सूक्ष्मान्तरितदूरा ः प्रत्यक्षाः कस्यचिद्यथा । अनुमेयत्वतोऽग्न्यादिरिति सतर्सस्थितिः । इस प्रकार महाभाष्यके वाक्योंको उद्धृत किया गया है। ९७८ ई. में श्रीचामुण्डरायके द्वारा कर्णाटकमाषामें विरचित त्रिषष्टिलक्षण पुराणमें भो समन्तभद्रस्वामोके भाष्यका इस प्रकार स्मरण किया गया है ।
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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