SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीयाधिकार सर्वतः || १५८ ।। पूर्णासंज्ञितिरश्चामविरुद्धं जन्म जातुचित् । नारकामरतिर्यक्षु नृषु वा न तु संख्यातीतायुषां मर्त्यतिरश्चां तेभ्य एव तु । संख्यातवर्षजीविभ्यः संज्ञिभ्यो जन्म संस्मृतम् ॥ १५९ ॥ संख्यातीतायुषां नूनं देवेष्वेवास्ति संक्रमः । निसर्गेण भवेत्तेषां यतो मन्दकषायता ॥ १६०॥ शलाकापुरुषा नैव सन्त्यनन्तरजन्मनि । तिर्यचो मानुपाश्चैव भाज्याः सिद्धगतौ तु ते ।। १६१ ॥ મ अर्थ – सब लब्ध्यपर्याप्तक जीव, सूक्ष्मकाय, अग्निकायिक, वायुकायिक और असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय इनका तिर्यङचोंसे ( अन्य गतिमें ) निकलना नहीं होता अर्थात् ये मर कर पुनः तियंच गतिमें ही उत्पन्न होते हैं । पृथिवीकायिक, जलकायिक और वनस्पतिकायिक इन तीन कायिकोंका, विकलत्रयोंका तथा असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय मनुष्य और शिर्य बोंगें र उत्पन्न होना विरुद्ध नहीं है अर्थात् मनुष्य मर कर इनमें उत्पन्न हो सकते हैं और ये मर कर मनुष्यों में उत्पन्न हो सकते हैं। नारकी और देवोंका परस्पर संक्रमण विरुद्ध है अर्थात् नारकी देब नहीं हो सकता और देव नारकी नहीं हो सकता | स्थूलपर्याप्तक पृथिवीकायिक, जलकायिक, और प्रत्येक वनस्पति इनमें तिर्यञ्च मनुष्य तथा देवोंका जन्म कहा गया है। सभी अग्निकायिक और सभी वायुकायिक जीव अनन्तर जन्ममें मनुष्यों में उत्पन्न नहीं होते हैं, यह नियम है। पर्याप्तक असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों का जन्म कदाचित् नारकियों, देवों, तिर्यञ्चों और मनुष्योंमें विरुद्ध नहीं है अर्थात् कभी किसी जीवका जन्म होता है सबका सर्वदा नहीं । असंख्यातवर्षकी आयुवाले मनुष्य और तिर्यञ्चका जन्म संख्यातवर्षकी आयुबाले संज्ञी मनुष्य और तिर्यञ्चोंसे माना गया है अर्थात् भोगभूमिके मनुष्य और तिर्यञ्च कर्मभूमिके मनुष्य और तिर्यञ्चोंसे आकर उत्पन्न होते हैं। नारकी और देवोंका जन्म भोगभूमिमें नहीं होता। इसी तरह भोगभूमिके मनुष्य और तिर्यञ्च भी मर कर भोगभूमि मनुष्य और तिर्यञ्च नहीं होते हैं । असंख्यातवर्षको आयुवाले - भोगभूमिज मनुष्य और तिर्यथ्चों का जन्म नियमसे देवों में ही होता है क्योंकि उनके स्वभावसे मन्दकषाय रहती हैं। शलाकापुरुष अनन्तर जन्ममें तिर्यञ्च और मनुष्य नियमसे नहीं होते अर्थात् नरक और देवगतिमें उत्पन्न होते हैं। कितने ही शलाकापुरुष सिद्धगतिको भी प्राप्त होते हैं । A भावार्थ - - २४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ९ बलभद्र, ९ नारायण और १ प्रतिनारायण ये ६३ शलाकापुरुष कहलाते हैं । इनमें तीर्थंकर नियमसे मोक्ष जाते १०
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy